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भारतीय गणितके इतिहासके जैन-स्त्रोत
(ग) कोई संख्या जितनी बार ३ से विभक्त की जा सके उसके उतने ही तृकच्छेद होते हैं। फलतः
क्ष के तृच्छेद =तृच (क्ष) = लग ३ यहां लघुगणक ३ के आधारसे है। (घ) किसी संख्याके चतुर्थच्छेद उतने होते हैं जितनी बार उसमें ४ से भाग दिया जा सके । क्ष के चतुर्थच्छेद = लग (क्ष) जिसमें लघुगणकका आधार ४ होगा।
आजकल गणितज्ञ ए अथवा १०के आधारसे भी लघुगणकका प्रयोग करते हैं। ऊपरके दृष्टान्तोंसे स्पष्ट है कि जैनी २,३ तथा ४ के आधार तक संभवतः लघुगणकका प्रयोग करते थे किन्तु इसका व्यापक प्रयोग उन्होंने नहीं किया है । धवलामें इस बात के निश्चित प्रमाण हैं कि जैनोंको अधो लिखित लघुगणक नियम भलीभांति ज्ञात थे
(१) लग (म/न)= लग म-लग न । (२) लग (मन)= लग म+ लग न । (३) लग (म)=म, यहां लघुगणकका अधार २ है ।
(४) लग (क्ष)= २ क्ष लग क्ष ।
(५) लग लग (६)लग क्ष+१+लग लग क्ष । क्यों कि वामांक= रग (२ क्ष लग क्ष)
=लग क्ष+जग +लग लग क्ष
=लग क्ष+१+लग लग क्ष । (२ के आधारसे हुए लग २ के समान यहां १ है।)
(६) लग (क्ष) क्ष = द लग क्ष (७)माना '' एक संख्या है। तब
श्र
अका प्रथम वर्गितसं = अ =ब (मान लीजिये )
,, द्वितीय ,, =ब =म(
,
)
, तृतीय , = य =द ( , ) धवला में निम्न निष्कर्ष मिलते है(क) लग ब =अलग अ
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