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वर्णो-अभिनन्दन-ग्रन्थ
आदिका जो भक्त था, वह इसका कवि होना चाहिए, जो विक्रमकी नवमी शतोके अन्तमें, और दशमी शतीके प्रारम्भमें विद्यमान था।
सुप्रसिद्ध पं० नाथूराम प्रेमीजीने 'जैनसाहित्य और इतिहास (पृ० ५१९) में अमोघषर्षका परिचय कराते हुए उसे इस प्रश्नोत्तर रत्नमालाका कर्ता बतलाया है और सूचित किया है कि "प्रश्नोत्तररत्नमालाका तिब्बतीभाषामें एक अनुवाद हुआ था, जो मिलता है, और उसके अनुसार वह अमोधवर्षको बनायी हुई है । ऐसी दशामें उसे शङ्कराचार्यकी, शुकयतीन्द्रकी या विमलसूरिकी रचना बतलाना जबर्दस्ती है ।"
सं०५ की टिप्पणीमें उन्होंने लिखा है- 'श्वेताम्बर साहित्यमें ऐसे किसी विमलसू रिका उल्लेख नहीं मिलता, जिसने प्रश्नोत्तररत्नमाला बनायी हो। विमलसूरिने अपने नामका उल्लेख करने वाला जो अन्तिम पद्य जोड़ा है, वह आर्या छन्दमें है, परन्तु ऐसे लघुप्रकरण ग्रन्थोंमें अन्तिम छन्द आम तौरसे भिन्न होता है, जैसा कि प्रश्नोत्तररत्नमालामें है और वही ठीक मालूम होता है।"
यह कथन सूक्ष्मदृष्टिसे विचार करने पर अपुष्टसा मालूम होता है । यह नहीं बताया किदिगम्बर साहित्यमें अन्यत्र कहां कहां उल्लेख मिलता है कि-अमोघवर्षने यह प्रश्नोतररत्नमाला . बनायी थी। तिब्बती भाषाका लेखन अस्पष्ट और सन्दिग्ध है, ऐसे लेखन पर इस कृतिको अमोघवर्षकी बतलाना उचित नहीं है। श्वेताम्बर साहित्यमें विमलसूरिकी रचना सूचित करती हुई इस प्रश्नोत्तररत्नमालाकी ही छह सौ वर्ष प्राचीन शताधिक प्रतियां भिन्न-भिन्न स्थानोंमें उपलब्ध हैं। अतः सम्भव तो यह है कि ---आर्यामय मूल ग्रन्थसे अलग मालूम पड़ता अमोघवर्प नामवाला वह अनुष्टुप श्लोक, सितपटगुरु विमल निर्देशवाली २९ वी आर्याके स्थानमें किसीने जोड़ा होगा।
यह कोई महाकाव्य नहीं है, कि सर्गके अन्तिम पद्योंकी तरह इसके अन्तमें भिन्न छन्दों वाली रचना चाहिये । प्रकरणों के अन्तिम पद्य भिन्न छन्दमें होनेका कोई नियम नहीं है। अतः ऐसी दलीलोंसे इस कृतिको अमोघवर्षकी बतलाना युक्ति-युक्त प्रतीत नहीं होता। तटस्थ दृष्टिसे इस निबन्धका मनन करने पर, इस कृतिका वास्तविक कवि सितपट-गुरु विमल प्रतीत होगा। यद्यपि राज्य त्यागनेवाले राजाका 'राजा' रूपसे परिचय देनेके समान ही 'सितपटगुरुणा' आदि भी सन्देहोत्पादक हैं ।
राजा अमोघवर्ष के नाम-निर्देशवाली प्रश्नोत्तर-रत्नमालाकी कितनी प्राचीन प्रतियां कहां कहां किस प्रकार उपलब्ध हुई है ? किसीने प्रकट नहीं किया, श्वेताम्बर जैन-समाजके चतुर्विध संघमें इसका पठनपाठन-प्रचार व्याख्यानादि अधिक रूपमें चलता रहा है, ऐसा मालूम होता है। श्वेताम्बर जैन विद्वानों, और प्राचार्योंने इसके उपर संक्षिप्त, विस्तृत, प्रत्येक प्रश्नोत्तरके साथ कथा-साहित वृत्तियां व्याख्या, अवचूरि, बालावबोध, भाषार्थ-स्तवक (ठवा), वार्तिक आदि रचे हैं । सैकड़ों वर्षों से गुजरातमें इस कृतिने अच्छी
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