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प्रश्नोत्तररत्नमालाका कर्ता ?
श्री पं० लालचन्द्र भगवान् गान्धी
प्रश्नोत्तर रत्नमाला के कर्तृत्वके सम्बन्ध में कितने ही समयसे मतभेद चला आता है । एक २९ की लघुका कृतिके भिन्न भिन्न दिगम्बर श्वेताम्बर जैन, ब्राह्मण, बौद्ध, अनेक कर्ता होना विचित्र है । तथापि भिन्न भिन्न स्थानों में प्राप्त विविध नाम-निर्देश सत्य गवेषणा करनेके लिए आह्वान करते हैं ।
सितपट- गुरु विमल नामयुक्त मूलकी प्राचीन प्रतियां -
सन् १८९० की आवृत्ति में और पिछली सन् १९२६ को चौथी आवृत्तियों में इस कृतिके ऊपर नीचे प्राचीन प्रति (संवेगि साधु श्रीशान्तिविजयजी की) के आधार से 'श्रीविमल प्रणीता ( विरचिता) प्रश्नोत्तररत्नमाला' छुपा हुआ है ? और इसकी अन्तिम २९ वीं आर्या में रचयिताने अपना नाम विमल, और अपने विशेषणमें' सितपटगुरु (श्वेताम्बराचार्य ) स्पष्ट सूचित किया है
" रचिता सितपटगुरुणा विमला विमलेन रत्नमालेव । प्रश्नोत्तरमालेयं कण्ठगता कं न भूषयति ? ॥ २६॥"
लेकिन सम्पादकने वहां टिप्पणी में आर्याके स्थानमें दो पत्रवाली ( सूरतके श्रेष्ठि भगवान् दास प्रेषित ) पोथीका पाठान्तर अनुष्टुप् श्लोक भी दिया है—
“विवेकात् त्यक्तराज्येन राज्ञेयं रत्नमालिका । रचितामोघवर्षेण सुधियां सदलंकृतिः ॥”
यह पोथी कितनी प्राचीन है ?, अथवा यह श्लोक-लेखन कितना प्राचीन है ? मालूम नहीं । विवेकसे राज्यका त्याग करनेपर भी नामका मोह त्याग न करनेवाला अपनेको 'राजा' शब्द द्वारा परिचित करे पूर्व नामका त्याग न करे ? एक लघुकृतिके कर्तारूपमें अपनेको प्रकट करे; यह विचित्र लगता है । अमोघवर्ष नामक अनेक राजा हो गये हैं तथापि कई दिगंबर विद्वानोंका मत है कि दि० श्राचार्य जिनसेन
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