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वर्णी अभिनन्दन ग्रंथ
विषय विकारसे दूषित है तब तक उसमें शिवका साक्षात्कार असंभव है । 'ए योगी, निर्मल मनमें ही परमशिवका साक्षात्कार होता है, घन रहित निर्मल नभोमण्डल में ही सूर्य स्फुरित होता है
जोइय णित्र मणि णिम्मलए पर दीसह सिव सन्तु । अम्बर निम्मल घण रहिए भागु जि जेम फुड़न्तु ॥
( प० प्र० १०११९ )
यह खेदकी बात है कि निरंजन और निर्गुण मतके अनुयायी साधकों के साहित्य के अध्ययन के प्रसंग में अभीतक इन जैन साधकोंके साहित्यका उपयोग नहीं किया गया है । रामसिंह जोइन्दुके अतिरिक्त और कोई भी साधक इस श्रेणीके कवि हुए हैं या नहीं यह हमें मालूम नहीं है । मेरा विश्वास है कि जैन भाण्डारोंमें अभी इस प्रकारके अनेक ग्रंथ पड़े हुए हैं। उनके सुसंपादित संस्करणकी बड़ी आवश्यकता है और साथ ही सन्त साहित्य के शोधकों का भी यह कर्तव्य है कि वे पोथियोंसे ही सन्तु न रहकर इन अज्ञात उत्सों की खोज खबर लें ।
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