________________
प्रश्नोत्तर रत्नमालाका कर्ता लोकप्रियता पायी है । पठन-पाठन के लिए उपयुक्त प्रकरण संग्रह, प्रकीर्णग्रन्थ संग्रह प्रकरण पुस्तिका आदिमें इसके प्रति समादर दर्शाया है ।
गुजरात की प्राचीन राजधानी पट्टन में भिन्न-भिन्न प्राचीन जैन ग्रंथभंडारों में इस प्रश्नोत्तर रत्नमालाकी पत्र पर लिखी हुई १५ प्रतियां विद्यमान हैं। गायकवाड प्राच्य ग्रन्थमाला के सं० ७६ में प्रकाशित 'पत्तनस्थ प्राच्य जैनभाण्डागारीय ग्रन्थसूची [ ताडपत्रीय विविधग्रन्थ परिचयात्मक प्रथम भाग ]' में पांचसौ वर्षोंसे अधिक प्राचीन अनेक प्रतियोंके उल्लेख हैं । इसके अतिरिक्त संघवी, पहन, डभोई ( दर्भावती ), बड़ौदा, लिंबडी भंडारोंकी प्रतियों, मध्यप्रान्त तथा बरारकी संस्कृत प्राकृत ग्रन्थसूची, बीकानेर, लन्दन, इटलीकी ग्रंथसूची, एशियाटिक सोसाइटी, खंभात, आदिकी सूचियों में विमलसूरि ही इसके कर्त्ता रूपसे उद्घृत हैं । जर्मन तथा फैञ्च अनुवादकोंने भी इसे विमलसूरि कृत उल्लेख किया है ।
विमलसूरि के उल्लेख - यद्यपि पीटर्सन ने 'पउमचरिउ' के कर्ताको बौद्ध लिखा था किन्तु श्री हरिदासशास्त्रीके निबन्धने उसका प्रतिवाद किया था । 'क्रियारत्न समुच्चयमें' गुणरत्नसू रिने, गुर्वावली में मुनि सुन्दरसूरिने तथा धर्मसागरजीने तपागच्छ पट्टावलिके अन्त में विमलसूरिका स्मरण किया है। नवाङ्गीवृत्ति में, तथा दर्शनशुद्धि में विमलगणिका उल्लेख है । एक विमलचन्द्र पाठक देवसूरिके बन्धु रूपमें डा० फ्लीट द्वारा उल्लिखित हैं । प्रा. वेवरकी जर्मन ग्रन्थसूची, अभिधान राजेन्द्र गच्छमतप्रबन्ध, आदि उक्त आर्या रूपसे विमलसूरिका उल्लेख करते हैं। इस प्रकार अनेक विमल गुरुयोंकी स्पष्ट संभावना होते हुए भी वि० सं० १२२३ में विरचित वृत्तिके आधारपर यही मानना उचित होगा कि इसकी रचना इस तिथि से पहिले हो चुकी थी ।
जैन सिद्धान्तभवन आरा में संकलित कन्नड़ लिपिके हस्तलिखित शास्त्रोंकी सूचीमें ५२७ संख्याक ग्रन्थ प्रश्नोत्तर रत्नमाला है । इसमें कर्ता रूपसे अमोघवर्षको ही लिखा है । ऐतिहासिक लेखकों तथा शोधकोंने भी राष्ट्रकूट अमोघवर्षकी कृतियों में इसे गिनाया है । तथापि विशेष विवरण एवं अनेक प्रतियों के अभाव में उसकी मान्यतापर विश्वास नहीं किया जा सकता है ।
प्राकृत रूपान्तर — इसका किसी अज्ञात नाम विद्वानने प्राकृत में भाषान्तर किया है जिसमें "पण्हुत्तर रयणमालं...इत्यादि" आशिष वचन है । इसपर उत्तमऋषिने गुजराती वार्तिक रचा था, जिसकी प्रति बड़ौदा जै० ज्ञा० म० में ( सं० १०९२ ) सुरक्षित है । जैसलमेर के शास्त्र भण्डारोंकी सूचीके आधार पर वि० सं० १२२३ में हेमप्रभसूरीने इसपर २१३४ श्लोक परिमाण करनेपर यह सम्वत् शुद्ध ही प्रतीत होता है। सं० १४२९ में देवेन्द्रसूरिने एक वृत्ति लिखी थी, जिसकी सं० १४४१, १४८६, १५३६ में की गयी प्रतिलिपियां पट्टन, पूना तथा बर्लिन में अब भी सुरक्षित हैं ।
वृत्ति रची थी। विवेचन
४२१