________________
वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ लेनेकी धुन सवार हुई। वह तीन बार मुनियों के भेष धारण करके आता है और सब भोजन ले जाता है।" यह कथा ग्रिमरोजकी ८१ वी कथाका स्मरण दिलाती है जिसमें 'ब्राडर लाष्टिङ्ग' अपने भोजनका तीन चौथाई 'सेण्ट पीटर'को देता है जो कि भिक्षुरूपमें तीन बार उसके सामने आये थे।
(ख) श्रारामशोभा तथा सांपकी कथा-संपेरे द्वारा अाहत सांपकी विद्युत्प्रभा रक्षा करती है । सांप शरीर छोड़कर देव रूपमें उसके सामने खड़ा हो जाता है तथा वर मांगनेको कहता है ।' इसीका रूपान्तर काडनेके 'अण्डर डैस' 'श्रोलिवे वाडमैन' में मिलता है जहां लिश्टनैस किसी दुष्ट लड़केसे सांपको मुक्ति दिलाता है । सांप मन्त्र-कीलित राजकुमारी निकलता है और वह अपने मुक्ति दातासे विवाह कर लेती है।
(ग) "आरामशोभाका एक राजकुमारसे विवाह होता है । उसकी विमाता उसे मारकर राजपुत्रसे अपनी लड़की विवाहना चाहती है । फलतः वह विषाक्त मिष्टान्न उसे भेजती है।" गोजियन वाचके 'जिसीवियनिशे मारचेन'में मत्सरी बहिनें 'मारज्जेडाके' पास विषाक्त रोट भेजती हैं।
(घ) “आरामशोभाके पुत्र होता है । विमाता उसे कुएंमें फेंक देती है और उसके स्थानपर अपनी लड़कीको लिटा देती है।" ग्रिमरोजको ग्यारहवीं कथा "ब डरचन तथा श्वेस्तरचन" की वस्तु भी ऐसी ही है।
(ङ) सोते समय ऋषिदत्ताके मुखको एक राक्षसी रंग देती है और वह राक्षसी समझी जाती हैं, आदि कथा ग्रिमरोजकी तीसरी कथा समान है।
(च) सागरदत्त चाण्डालसे कहता है कि दमनको मार डालो । वह उसकी एक अंगुली काटकर ही सागरदत्तको दिखाता है । इत्यादि कथा भी ग्रिमरोजको २९ वी कथाके समान है। इस प्रकार अनेक जैन काथाएं हैं जिन्हें योरूपियन कथाकारोंने अपना लिया था । कथाएं कैसे योरुप गयीं
कथात्रोंकी यह योरूप यात्रा एक नूतन मोहक समस्याको जन्म देती है। ट्वाइनीके मतसे "योरूपकी जिन कथाओंमें उक्त प्रकारकी समता है वे भारतवर्षसे ही योरूप ने (उधार) ली हैं । वास्तवमें ये कथाएं परसिया होकर योरूप पहुंची हों गी । अब लोग इस बातका अपलाप नहीं करते कि विविध कथाए' भारतसे योरूप आयी थीं । यह शंका 'कि क्या ये भारतमें ही सर्व प्रथम गढी गयी थी हो सकती है...यदि धर्म प्रचारकों, प्रवासियों, तातार आक्रमणों, धर्म युद्धों, व्यापारिक, आदि महायात्राओं के समय इन कथाओंके मौखिक आदान प्रदानको दृष्टिमें न रखा जाय । क्योंकि निश्चयसे इन्हीं अवसरों पर भारतीय जैन कथाओंकी धारा योरूपकी ओर बही थी।" भारतीय साहित्यकी सफल निर्माता राज्य
४२४