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वी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
प्रतीत होता है कि मालवि-माधव कन्नड़ नाटक था । प्रधान नायिकाके नामका भेद सूचित करता है कि यह नाटक संस्कृत नाटकका केवल भाषान्तर नहीं था अपितु स्वतंत्र कन्नड़ नाटक था। जिसमें कविने भवभूतिका प्रसिद्ध नाटक सामने रहनेके कारण संभवतः नायिकादिके आंशिक समान नाम रखे थे । दुर्गसिंह द्वारा की गयी लेखक तथा नाटककी प्रशंसा सिद्ध करती है कि ८०० ई० लगभग एक महान् कन्नड़ कविने महान् कन्नड़ नाटककी सृष्टि की थी जो कि अब लुप्त है । नाम तथा कन्नड़ साहित्यके निर्माण आदि समस्त परिस्थितियोंसे यह भी पुष्ट होता है कि कन्नमय्य जैन विद्वान थे।
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