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वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ
और तदनुकूल अपने जीवन को बनानेका प्रयत्न करता है । जैन पुराणों में अंकित नारी पात्रोंका चरित्र भी मानव मात्रको आलोक प्रदान करने वाला है । जैसा कि कतिपय उद्धरणों द्वारा सिद्ध हो गा ।
जम्बूस्वामी चरित्रमें भवदेव अपने ज्येष्ठ भ्राताकी प्रेरणा से अनिच्छा पूर्वक मुनि हो गया था, किन्तु उसकी आंतरिक इच्छा भोगोंसे निवृत्त नहीं हुई थी ! वह सर्वदा अपनी रूपवती, गुणवती, सुशीला भार्याका स्मरण कर आनन्दानुभव किया करता था। एक दिन उसके गुरु अपने अनेक शिष्योंके साथ, जिनमें भवदेव भी था उसके नगर में आये । विषय वासनाओं से परास्त भवदेव एक मन्दिर में जाकर ठहर गया और वहां पर रहनेवाली आर्थिक से अपनी स्त्रीकी कुशल क्षेम पूंछने लगा । आर्यिकाने - भवदेवकी स्त्रीने, जो कि भवदेवके सन्यासी हो जानेपर संसारसे उदासीन होकर आर्यिका का व्रत पाल रही थी - मुनिको विचलित देखकर उपदेश दिया । आर्यिका नागवसू–भवदेवकी स्त्रीने वासना में आसक्त हुए अपने पतिको इस प्रकार पतनके गड्ढे में गिरने से बचाया । उसने केवल एक ही व्यक्तिकी रक्षा नहीं की किन्तु साधु जैसे उच्चादर्शको दोष से बचानेके कारण भारतीय उत्तम साधु परम्पराकी महत्ताका मुख भी उज्ज्वल रखा। क्या अब भी नारीको केवल वासना की मूर्ति कहा जा सकता है ?
हरिवंशपुराण में अरिंजय राजाकी पुत्री प्रीतिमतीका चरित्र लौकिक और पारमार्थिक दोनों ही दृष्टियों से उत्तम है । प्रीतिमती नाना विद्याओं में प्रवीण, साहसी, और रूपवती थी। जब वह वयस्क हुई तो पिताने स्वयम्वरमें आये हुए राजकुकारों से कहा कि जो इस कन्याको तेज चलने में परास्त कर देगा और मेरूकी प्रदक्षिणा जिनेन्द्र भगवान की पूजन करके पहले आ जायगा उसीके साथ इसका विवाह किया जायगा । उपस्थित सभी विद्याधर कुमार और भूमिगोचरी राजपुत्रोंने प्रयत्न किया, किन्तु वे सभी कन्या से पराजित हुए, जिससे विरक्त होकर प्रीतिमतीने सांसारिक वासनाओं को जलाञ्जलि देकर आर्यिका व्रत ग्रहण कर लिये तथा तपश्चरण द्वारा अपने आर्जित कमको नाश किया ।
हरिवंशपुराण में अनेकों नारियोंके चरित्र बहुत ही सुन्दर रूपमें अंकित किये गये हैं । जिन चरित्रोंसे नारियोंकी विद्वत्ता, तपश्चर्या, कार्यनिपुणताकी छाप हृदयपर सहज ही पड़ जाती है । बनारस निवासी सोमशर्माकी पुत्री सुलसा और भद्राको विद्वत्ताका सुन्दर और हृदयग्राहक वर्णन किया है ।
पद्मपुराण में विशल्याका चरित्र चित्रण बहुत ही सुन्दर किया गया है । पुराणकारने बताया हैं कि उस नारी शिरोमणिमें इतना तेज था कि उसके जन्म ग्रहण करते ही सर्वत्र शान्ति छा गयी
१ जम्बूस्वामी चरित्र पृ० ७१-७२
२ हरिवंशपुराण पृ० ४३२
३ हरिवंशपुराण पृ० ३२६ ।
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