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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
प्राकृत साहित्य ही नहीं समग्र संस्कृत साहित्यमें प्राचीनतम ग्रन्थ है। जयवल्लभके 'वज्जालग्ग' पर रत्नदेवगणिने १३९३ में टीका लिखी थी। भानुचन्द्रके शिष्य सिदिचन्द्रगणि ने 'सुभासियसंदोहकी' रचना की थी। भवभावना आदि पाइय ग्रन्थ सूक्तिओंसे परिपूर्ण हैं। कुमारपालचरिया भी नीति वाक्योंसे परिप्लावित है।
दर्शन-अर्धमागधीमें लिखित 'पवयणसार, पंचसुत्त सम्मइपयरण, धम्मसंगहणी, कर्मग्रन्थ आदि विविध दार्शनिक ग्रन्थ हैं ।
गणित शास्त्र-आर्यभट्टके गणित पदको टीकामें भास्करने पाइय पद्य उद्धृत किये हैं, जिस परसे पाइय गणित ग्रन्थोंका अनुमान किया जा सकता है । सूयगह निज्जुत्तिकी सीलाककृत टीकामें तीन गुरुगाथाएं भी यही अनुमान कराती हैं । इनके अतिरिक्त सूरियपण्णत्ति, इइसियकरण्डग, तिलोयपण्णत्ति, आदि ग्रन्थ गणित शास्त्रके उल्लेखोंसे परिपूर्ण हैं।
विविध ग्रन्थ -जिनप्रभसूरिका णाणातित्थकहा, दुर्गदवेका रिछसमुच्चय, सग्गरसुद्धि, सिद्धपाहुण, मयणमाउड, पिवीतियाणाण, वत्थुसार, आदि विविध ग्रन्थ हैं।
___ यह अति संक्षिप्त तथा एक सम्प्रदायके साहित्यको ही प्रधानतया दृष्टि में रखकर लिखा गया निबन्ध यह सिद्ध करनेके लिए पर्याप्त हैं कि संस्कृतकी भांति प्रत्येक विश्वविद्यालयको प्राकृत पाठनकी पूर्ण व्यवस्था करनी चाहिये । इससे हमारी दृष्टि उदार होगी। और भाषाके आधार पर निर्मित दलबन्दी भी स्वतः शिथिल हो जायगी ।
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