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वर्णी अभिनन्दन-ग्रन्थ
पर आक्रमण किया था । इस युद्ध में अग्निमित्रको दास राजा' (सामन्त) ही नहीं बनना पड़ा अपितु खारवेलने पाटलिपुत्र पर ऐसा प्रहार किया कि वह ध्वस्त हो गयी और अतीत वैभव तथा महत्ताको पुनः प्राप्त न कर सकी। अबतक ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला जिसके आधार पर यह कल्पनाकी जा सके कि स्वामीके समयमें पाटलिपुत्रके गये दिन वापस आगये हों गे । स्वामीका बहु-मान्य समय शक सं० ६० या १३८ ई० है फलतः उपर्युक्त घटना क्रमके आधारसे तो यही कहा जा सकता है कि इन दिनों मगधका पाटलिपुत्र अवनति पथपर ही अग्रसर रहा होगा । फलतः शिक्षा संस्कृतिके विकासकी वहां कल्पना करना दुःसाहस होगा । इसके अतिरिक्त यह भी विचारणीय है कि अपनी पड़ोसके तामिलनाडु प्रदेशमें ही स्थित प्रमुख शिक्षा-संस्कृति केन्द्र काञ्जीवरम (काञ्चीपुरम् ) मदुरा, आदिको छोड़कर वे सुदूरवर्ती पाटलिपुत्र क्यों जाते ? उरयूर, काञ्ची, मदुरा, भादलपुर, आदिमें जैनमठों, वसतियों तथा पल्लियोंको भरमार थी। यह भी अनुमान है कि स्वामीने काञ्जी या निकटस्थ प्रदेश में दीक्षा ली हो गी । इसके बाद उन्हें भस्मक रोग 'भस्मक व्याधि' हो गया था। तब अपने जीवनको खतरे में डालकर इतनी लम्बी तथा व्यर्थ यात्रा क्यों की होगी? शिलालेखपर विचार करनेसे इतना तो झलकता है कि जन्म तथा दीक्षा स्थानसे निकट दक्षिण पाटलिपुत्रको स्वामीने अविजित नहीं छोड़ा हो गा । क्योंकि उपरिलिखित दक्षिण भारतीय समुन्नत नगरोंमें भादलपुर ( पाटलिपुत्र ) भी था । इन शिक्षा-संस्कृति केन्द्रोंमें वैदिक, जैन तथा बौद्धोंके बीच अनेक शास्त्रार्थ भी हुए थे। प्राचीन युगमें इसका तामिल नाम 'तिरुपादरीपुलियूर' अथवा तिरुप्यापुलियूर था, तथा जो मद्रास प्रेसीडेंसीके अार्काट जिलेका मुख्य स्थान वर्तमान कडल्लोर है।
___ इसकी प्राचीन वस्ती 'पेट्टा' है जो वर्तमान नगरसे दो मील दूर है। यहांपर साढे चार फुट ऊंचा जिनबिम्ब मिला था जिसे मंडम ग्रामके व्यक्तिने विष्णुमूर्ति समझ कर अपने ग्राममें वृक्षके नीचे विराज कर पूजना प्रारम्भ कर दिया था। तैलादि चढ़ानेसे मूर्तिपर काले धब्बे पड़ गये हैं। यहांसे एक सड़क सौ फुट ऊंचे पहाड़को पार करती हुई गेडीलम नदीके तीरपर स्थित 'त्रिकहिन्द्रपुर को जाती है। यहीं पर भूमिगर्भस्थ मन्दिर, मठ, अादि प्राचीन पाटलिपुत्रके भग्नावशेष हैं । ये १२ से १५ मील तकके घेरेमें फैले हैं । तथा इनके अस्तित्वकी सूचना यत्र तत्र ऊपर खड़े या पड़े स्तम्भ श्रादि देते
१. लूईस राइसकृत श्रवणबेलगोलके शिला०, कर्नाटक शब्दानुशासन, महावशिष्ट, भ. ओं. रि. ३, रिपोर्ट
(१३३-४) पृ. ३२०। २, स्वामी समन्तभद्र पृ० १२। ३. श्रवणबेलगोल शिलालेख (प्रा०) ५४, ( न०), "काञ्च्यान्नानाटकोऽहं.." पद्य । ४. 'स्टडीज इन साउथ इण्डियन जैनिज्म" पृ०३० । इण्डि० ऐण्टी, पट्टा लि, आदि । ५. आकलोजिकल सर्वे ओफ इण्डिया ७ ।
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