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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
वीर-निर्वाणसे एक हजार वर्ष बाद बतलायी है, उसका राज्य काल ४२ वर्ष दिया है, उसके अत्याचारों तथा मारे जानेकी घटनाओं का उल्लेख किया है और मृत्युपर उसके पुत्र अजितंजयका दो वर्ष स्थायी धर्मराज्य लिखा है। साथ ही, बादको धर्मकी क्रमशः हानि बतलाकर और किसी राजाका उल्लेख नहीं किया है । इस प्रकरणकी कुछ गाथाए निम्न प्रकार हैं, जो कि पालकादि राज्यकाल ९५८ का उल्लेख करने के बाद दी गयी हैं
"तत्तो कक्की जादो इंदसुदो तस्स चउमुहो णामो। सत्तरिवरिसा भाऊ विगुणिय इगवीस रज्जत्तो ॥६६॥ आचारागंधरादो पणहरिजुत्तदुसयवासेसुं । बोलीणेसुं बद्धो पट्टो कक्की स णखइणो ॥१०॥ अह कोवि असुर देश्रो श्रोहीदो मुणिगेणाण उवसग्गं । णादणं त कक्की मेरेदि हु धम्मदोहि त्ति ॥१०३॥ कक्किसुदो अजिदंजय णामोरक्खदि णमदि तच्चरणे । तं रक्खदि असुरदेो धम्मे रज्जं करेजंति ॥१०४॥ तत्तो दोवेवासो सम्मं धम्मो पट्टिदि जणाणं ।
कमसो दिवसे दिवसे कालमहप्पेण हाएदे ॥१०५॥ . इस घटनाचक्र से यह साफ मालूम होता है कि तिलोयपण्णत्तीकी रचना कल्किराजाकी मृत्युसे १०-१२ वर्षसे अधिक बादकी नहीं है। यदि अधिक बादकी होती तो ग्रंथ पद्धतिको देखते हुए यह संभव नहीं था कि उसमें किसी दूसरे प्रधान राज्य अथवा राजाका उल्लेख न किया जाता । वीरनिर्वाण शक राजा अथवा शक संवत् से ६०५ वर्ष ५ महीने पहले हुआ है, जिसका उल्लेख तिलोयपण्णत्तीमें भी पाया जाता है । एक हजार वर्षमें से इस संख्याको घटाने पर ३९४ वर्ष ७ महीने अवशिष्ट रहते
पाठक उसे मिहिरकुल नामका राजा बतलाते हैं और जैन कालगगनाके साथ उसकी संगति बैठाते हैं यह बहुत अत्याचारी था । इसका वर्णन चीनीयात्री हुए नसाङ्ग के यात्रा वर्णनमें विस्तार के साथ मिलता है तथा राजतरगिणीमें भी इसकी दुष्टताका हाल दिया है। परन्तु डा० काशीप्रसाद जायसवाल इसे मिहिरकुल को पराजित करनेवाले मालबाधिपति विष्णु यशोधर्माको ही, 'कल्कि' बतलाते हैं, जिसका विजयस्तम्भ मन्दसौरमें स्थित हैं और वह ई० सन् ५३३-३४ में स्थापित हुआ था। जनहितैषी भाग १३ अंक १२ में जायसवालजी का 'कल्कि अवतारकी ऐतिहासिकता' और पाठकजी का 'गुप्त राजाओं का काल, मिहिरकुल और कल्कि' नामक
लेख पृ० ५१६ -- ५२५ । १ णिवाणे वीरजिणे छव्वस्ससदेसु पंचवरसेसु । पणमासेसु गदेसु संजादो सग-णिओ अहवा ।।-- तिलोयपण्णत्ती पण छस्सयवस्सं पणमासजुदं गमिय वीरणिब्वुझ्दो सगराजो तो कक्की चदुणतिय महिय सगमासं ।।
–त्रिलोकसार