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वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ
राजदरबारमें शत्रुपक्षका दूत रोषपूर्ण बचनोंसे युवराजको उत्तेजित कर देता है । युद्धके लिए तयार हो जाते हैं । पुरोहित आदि उसे शान्त करनेका प्रयत्न करते हैं । युवराज उन सबको उत्तर देते हैं । इस प्रकार चन्द्रप्रभका बारहवां सर्ग किरात और माघके दूसरे सर्गको भी मात करता है । यथा - 'नय और पराक्रम में नय ही बलवान् है, नय शून्य व्यक्तिका पराक्रम व्यर्थ है । बड़े बड़े मदोन्मत्त हाथियोंको विदारण करनेवाला सिंह भी तुच्छ शवरके द्वारा मारा जाता है ।' जो नीतिमार्गको नहीं छोड़ता है यदि उसका कार्य सिद्ध नहीं होता है तो यह उसका दोष नहीं है अपितु उसके विपरीत दैवका ही प्रभाव है | आप विवेकियों में श्रेष्ठ हैं अतः विना विचारे शत्रुके साथ दण्डनीतिका प्रयोग मत कीजिये । यतः शत्रु अभिमानी है इसलिए साम-उपाय से ही शान्त हो सकता है । अपना प्रयोजन सिद्ध करने के लिए शत्रुपर सबसे पहले सामका प्रयोग करते उसके बाद भेद, आदि अन्य उपायोंका; दण्ड तो अन्तिम उपाय । एक प्रिय वचन सैकड़ों दोषों को दूर करने में समर्थ है, मेघ जलबिन्दुके कारण ही लोगोंको प्रिय हैं, वज्र श्रादिके द्वारा नहीं । दामसे धन हानि, दण्ड से बल हानि और भेदसे 'कपटी' होनेका अपयश होता है किन्तु सामसे बढ़कर सर्वथा कल्याणकारी दूसरा उपाय नहीं है ' ।
सोमदेवसूरि
यशस्तिलक और नीतिवाक्यामृतके कर्ता बहुश्रुत विद्वान् श्राचार्य सोमदेवने चालुक्य वंशीय राजा अरिकेसरीके प्रथम पुत्र श्री वद्दिगराजकी गङ्गाधारा नगरीमें चैत्र सुदी १३ शक संवत् ८८१ को यशस्तिलक चम्पूको पूर्ण करके संस्कृत साहित्यका महान उपकार किया था । इन्होंने अपने नीतिवाक्यामृत में राजनोतिके समस्त श्रृङ्गोंका जो सरस और सरल विशद विवेचन किया है वह तात्कालिक तथा चादके समस्त राजनैतिक विद्वानों के लिए आदर्श रहा है । काव्यग्रंथोंके कुशल टीकाकार मल्लिनाथसूरिने अपनी टीकाओं में बड़े गौरव के साथ नीतिवाक्यामृत के सूत्र उद्धृत किये हैं । नीतिवाक्यामृत के अतिरिक्त यशस्तिलकचम्पूके तृतीय आवास में भी राजाओं के राजनैतिक जीवनको व्यवस्थित और अधिक से अधिक सफल बनाने के लिए पर्याप्त देशना दी है।
अपने राज्यका समस्त भार मन्त्रियों आदिपर छोड़कर बैठनेसे ही राजा लोग असफल होते हैं । श्राचार्य कहते हैं कि राजानोंको प्रत्येक राजकीय कार्यका स्वयं अवलोकन करना चाहिये । क्यों कि जो राजा अपना कार्य स्वयं नहीं देखता है उसे निकटवर्ती लोग उल्टा सीधा सुझा देते हैं । शत्रु भी उसे अच्छी तरह धोखा दे सकते हैं । 'जो राजा मन्त्रियोंको राज्यका भार सौंपकर स्वेच्छा विहार करते हैं वे मूर्ख, ऊपर दूध की रक्षाका भार सौप कर श्रानन्दसे सोते हैं । कदाचित् जल में मछलियोंका और
१. चन्द्रप्रभचरित सर्ग १२, श्लो० ७२ ८१ ।
१. नीतिवाक्यामृत. स्वामिसमुद्देश. सूत्र ३२-३४ ।
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बिल्लियों के आकाश में