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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ माणिक्यचन्द्र मन्त्री वस्तुपालके समकालीन थे। उन्होंने संकेतके अतिरिक्त शान्तिनाथ-चरित्र और पार्श्वनाथचरित्र नामके दो महाकाव्य भी रचे हैं।
साधारणतया विद्वान् लोग संकेतको सं० १२१६ को रचना समझते हैं । स्वयं माणिक्यचन्द्रने संकेतकी ग्रन्थ प्रशस्तिमें उसके रचना समयकी सूचना "रस (६) वक्त्र (१) ग्रहाधीश (१२) वत्सरे मासि माधवे । काव्ये काव्यप्रकाशस्य सङ्केतोऽयं समर्पितः ॥” द्वारा दी है । साधारणतया वक्त्रका अर्थ एक किया जाता है और तदनुसार 'रसवक्त्रग्रहाधीश' से सं० १२१६ फलित होता है, किन्तु हमारे सामने ऐसे कितने ही ऐतिहासिक प्रमाण विद्यमान हैं जिनके आधारपर 'वक्त्र' शब्दका अर्थ चार (ब्रह्माके मुख) अथवा छह (कार्तिकेयके मुख) मान लेना भी स्वाभाविक सिद्ध है। ऐसे प्रमाण क्रमशः निम्न प्रकार हैं
१. आचार्य माणिक्यचन्द्रने अपने पार्श्वनाथचरित्र महाकाव्यकी रचना सं० १२७६ में काठियावाड़के अन्तर्गत दीवमें की थी। उन्होंने स्वयं उसकी रचनाकालके सम्बन्धमें “रस(६) र्षि (७) रवि (१२) सङ्ख्यायां, इत्यादि निर्देश किया है । संकेत कर्ता के प्रौढ़ पाण्डित्य और परिपक्व बुद्धिका फल है । यदि वह सं० १२१६ की रचना है, तो वे ६० वर्षके बाद एक महाकाव्यकी रचना करने योग्य रहे हों ऐसा मानना अनुचित ज्ञात होता है यद्यपि कर्ताका तब तक विद्यमान रहना स्वीकार किया जा सकता है । अतः पूर्वोक्त 'वक्त्र' का अर्थ एक के स्थान पर चार अथवा छह करके संकेतको सं १२४६ अथवा १२६६ की रचना मानना सविशेष सुसंगत है ।
(२) पार्श्वनाथचरित्रकी प्रशस्ति में माणिक्यचन्द्रने बताया है कि उन्होंने यह काव्य अणहिलवाड़ पाटनके राजा कुमारपाल और अजयपालके एक राजपुरुष वर्धमानके पुत्र दहेड़ और पौत्र पाल्हण ( जो कवि भी था ) की प्रार्थनासे लिखा था । कुमारपालका देहान्त सं० १२२६ में हुआ और उसका भतीजा अजयपाल राज्यारूढ हुआ । सं० १२३२ में अजयपालके एक सेवकने उसको मार डाला । अब यदि माणिक्यचन्द्रने अजयपालके एक राजपुरुषके पुत्र और पौत्रकी प्रार्थनासे ( यह पौत्र भी परिपक्व वयका होना चाहिए, क्योंकि स्वयं कर्ताने उसका 'प्रज्ञावता सत्कविपुङ्गवेन' द्वारा उल्लेख किया है ) इस काव्यकी रचना की हो तो यह स्पष्ट ही है कि उनकी कृतियोंका रचनाकाल-राजा अजयपालके समयसे कुछ पूर्व ही होना चाहिए-अर्थात् पार्श्वनाथ-चरित्रके रचनाकाल (सं० १२७६) का निकटवर्ती होना चाहिए ।
१ कृष्णमाचारी कृत संस्कृत साहित्य पृ० १९४।। २ पाटन ग्रन्थसूची भा० १, पृ० १५४ । ३ पीटरसनकृत संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थों की शोध-सूची विगत ( १८८४-५) पृ० १५६ । ४ "कुमारपाल मापालाजयपाल महीभूजौ। यः सभाभूषणं चित्त जैन मतमरोचयत् ॥", आदि ८ श्लोक ।
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