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महाकवि रद्दधू
पूर्णिमा मंगलवार के दिन पूर्ण की है। इस ग्रंथको कविने तीन महीने में बनाकर समाप्त किया था, जैसा कि उक्त ग्रंथके निम्न प्रशस्ति वाक्यसे प्रकट है-
चउदस्य वाणउ उरुरालि, वरिसइ गय विक्कमराय कालि । जिजण [ण] समक्खि, भद्दवमासम्मि स- सेय पक्खि । पुराणमिदिणि कुजवारे समोई, सुहयारे सुहणामें जणोई । तिहुमासयरंति पुराणहूउ । 'सम्मत्त - गुणाहि- णिहाणु धूउ । सुकौशलचरितकी रचना वि० सं० १४९६ माघवदी १० वीं के दिन अनुराधा नक्षत्र में हुई
है जैसाकि निम्नवाक्य से स्पष्ट है-
सिरिविक्कम समयंतरालि, वहतइ इंदु सम विसमकालि ।
चौदह सय संच्छरt श्ररण, छरणउवाहि पुणु जाय पुराण । माह दुजि कि दहमी दणम्मि, राहुरिक्ख पर्याडय सदाम्म ।
सम्मत्त गुणनिधान ग्रंथको प्रशस्ति में अन्य ग्रन्थाकी रचनाका कोई उल्लेख नहीं है; किन्तु सुकौशलचरितकी प्रशस्ति में निम्न ग्रंथोंके रचे जानेका स्पष्ट उल्लेख उपलब्ध होता है । पाश्वनाथचरित, हरिवंशपुराण और बलभद्रचरित ( पद्मपुराण) से यह स्पष्ट मालूम होता है कि वि० १४९६ . से पूर्व इनकी आार इनमें उलिलखत ग्रन्थोंको रचना हो चुका थी । बलहद्दचरिउमें सिर्फ हरिवंशपुराण ( नमिजिनचरित ) का समुल्लेख मिलता है । जिससे बलहद्दचरिउसे पूर्व हरिवंशपुराणकी) रचना होनेका अनुमान होता है । हरिवंशपुराण में त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचारत ( महापुराण), मेघेश्वर चरित, यशोधरचरित, वृत्तसार, जीवंघरचरित इन छह ग्रंथोंके रचे जानेका उल्लेख किया है जिससे यह स्पष्ट जाना जाता कि इन छह ग्रंथोंकी रचना भी वि० सं० १४६६ से पूर्व हो चुका था ।
सम्मइजिनचरिउ प्रशस्ति में, मेघेश्वरचरित, त्रिषष्ठिमहापुराण, सिद्धचक्रविधि, बलहद्दचरिउ, - सुदर्शनशील कथा और धन्यकुमारचरित नामके ग्रंथोंका उल्लेख पाया जाता है । यतः सम्म - जिनचरिउका रचनाकाल दिया हुआ नहीं है अतः यह कहना कठिन है कि इनकी रचना कब हुई थी, पर इनता तो निश्चित है कि वे सब ग्रंथ सम्मइजिनचरिउसे पूर्व रचे गये हैं ।
इन ग्रंथोंके सिवाय, करकण्डुचरित - सिद्धान्तार्कसार, उपदेशरत्नमाला, आत्मसंबोधकाव्य, पुण्याश्रव कथा, और सम्यक्त्वकौमुदी ये छह ग्रंथ कब रचे गये हैं ? करकंडुचरित और त्रिष्ठ महापुराण ये दोनों ग्रंथ अब तक देखने में नहीं आये हैं । इन ग्रन्थों के अतिरिक्त और भी ग्रंथ उक्त कविवरके रचे हुए होंगे; परन्तु उनका पता अब भी किसी शोधककी प्रतीक्षामें हैं ।
१ खरतरगच्छके हरिसागरसूरिका शास्त्रभंडार ।
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