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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
के लिए शुभगति प्रदानकरनेवाली और दुख-रोग-शोककी नाशक थी। ऐसी महत्वपूर्ण मूर्तिकी प्रतिष्ठा करके महान् पुण्यका संचय किया था और चतुर्विध संघकी विनय भी की थी। " (५) 'सम्मइजिनचरिउ' में फीरोज शाहके द्वारा हिसार नगरके वसाये जाने और उसका परिचय कराते हुए वहां सिद्धसेन और उनके शिष्य कनककीर्तिका नामोल्लेख किया है। इन सबकी पुष्टि 'पुष्णासव, सम्मतगुणनिधान' तथा जसहरचरिउ की' प्रशशिस्तयोंसे होती है।
(६) हिसारनगरके वासी सहजपालके पुत्र सहदेव द्वारा जिन बिम्बकी प्रतिष्ठा कराने और उस समय अभिलषित बहुत दान देनेका उल्लेख भी 'सम्मइजिनचरिउ' की अन्तिम प्रशस्तिमें दिया हुआ है। साथ ही, सहजपाल के द्वितीयादि पुत्रों द्वारा गिरनारकी यात्राके लिए चतुर्विध संघ चलाने तथा उसका कुल श्रार्थिक भार वहन करनेका भी समुल्लेख पाया जाता है जैसा कि उसके "ताहं पढम वर कित्ति लयाहरु...इत्यादि" आठ पद्योंसे प्रकट है ।
(७) यशोधरचरितकी प्रशस्तिसे भी प्रकट है कि लाहण या लाहडपुरके निवासी साहू कमलसिंहने गिरनारकी यात्रा ससंध अपने समस्त परिजनोंके साथ की थी और यशोधर चरित नामके ग्रन्थका निर्माण भी कराया था।
उपरोक्त सभी समुल्लेख ऐतिहासिक घटनात्रोंसे श्रोप-प्रोत हैं। इनका ध्यानपूर्वक समीक्षण करनेसे इनकी महत्ताका सहज ही बोध हो जाता है । अतः ये अन्वेषक विद्वानोंके लिए भी उपयोगी सिद्ध होंगे। कविवर रइधूका समय
कवि रइधू विक्रमकी १५ वीं शतीके विद्वान थे, इनकी ‘सम्मत्तगुणनिधान' और 'सुकौशलचरित' नामकी दो कृतियोंको छोड़कर शेष कृतियोंमें रचना काल नहीं दिया है, जिससे निश्चित रूपमें यह बतलाना तो कठिन है कि उन सब कृतियोंका निर्माणकाल कबसे कबतक रहा है; परन्तु कवि ग्वालियरके तोमरवंशी नरेश डूगरसिंह और उनके पुत्र कीर्तिसिंहके समकालीन हैं और उन्हीं के राज्यमें उनका निर्वाण हुआ है, जैसा कि पहले लिखा गया है। क्योंकि इनका राज्य समय वि० सं० १४. ८१ से १५३६ तक रहा है। अतः इनका मध्यवर्तीकाल ही प्रस्तुत कविकी रचनाओंका समय कहा जा सकता है । इतना ही नहीं किन्तु अधिकांश कृतियां संवत् १५०० से पूर्व ही रची गयी हैं । अतः १५ वीं शतीका उचरार्ध और १६ वीं शतीका प्रारम्भिक भाग रइधूका काल जानना चाहिये।
कविवरने 'सम्यक्त्वगुण निधान' नामक ग्रंथकी रचना वि० सं० १४९२के भाद्रपद शुक्ला
. १ जे गिरीणयरहु जत्त पवित्तउ, पविहिय णिय परियण संजुत्तउ ।—यशोधरचरित प्रशस्ति।
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