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महाकवि रइधू और उसकी प्रतिष्ठा भी करायी थी । इनकी दूसरी कृति 'हरिवंशपुराण' है जिसकी रचना इन्होंने वि० सं० १५०० में हिसारके साहू दिवड्डाकी प्रेरणासे की थी । साहू दिवढा अग्रवाल कुलमें समुत्पन्न हुए थे और उनका गोत्र 'गोयल' था। वे बड़े धर्मात्मा और श्रावकोचित द्वादश व्रतोंका अनुष्ठान करने वाले इनकी तीसरी कृति 'आदित्यवार कथा' है, जिसे रविव्रतकथा भी कहते हैं । और चौथी रचना 'जिनरात्रिकथा' है जिसमें शिवरात्रि कथाके ढंग पर जिनरात्रिके व्रतका फल बतलाया गया है । इनके सिवाय 'चंदप्यह चरिउ' नामका अपभ्रंश भाषाका एक ग्रन्थ और भी उपलब्ध है जिसके कर्ता कवि यशःकीर्ति हैं । चंद्रप्रभचरितके कर्ता प्रस्तुत यशःकीर्ति हैं इसका ठीक निश्चय नहीं; क्योंकि इस नामके अनेक विद्वान् हो गये हैं।
- भ० यशःकीर्तिको महाकवि स्वयंभूदेवका 'हरिवशंपुराण' जीर्ण शीर्ण दशामें प्राप्त हुआ था और जो खंडित भी हो गया था, जिसका उन्होंने ग्वालियरकी कुमर नगरीके जैन मन्दिर में व्याख्यान करनेके लिए उद्धार किया था । यह कविवर रइधूके गुरु थे, इनकी और इनके शिष्यों की प्रेरणासे कवि रइधूने अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है। इनका समय विक्रिमकी १५ वीं शतीका अन्तिम चरण है, सं०१४८१से १५०० तक तो इनके अस्तित्वका पता चलता ही है किन्तु उसके बाद और कितने समय तक वे जीवित रहे यह निश्चित बतलाना कठिन है।
भ० मलयकीर्ति-यह भट्टारक यशःकीर्तिके बाद पट्टपर प्रतिष्ठित हुए थे । इनके शिष्य गुणभद्र भट्टारक थे जिन्होंने इनकी कृपासे अनेक कथाग्रंथ रचे हैं । कवि रइधूने 'सम्मइजिनचरिउ' की प्रशस्तिमें भट्टारक मलयकीर्तिका निम्न शब्दोंमें उल्लेख किया है ?–'उत्तम-खम-वासेण अमंदउ, मलयकित्ति रिसिवरु चिरु णंदउ।' मलयकीर्तिने किन ग्रंथोंकी रचना की यह ज्ञात नहीं हो सका ।
भ० गुणभद्र-यद्यपि गुणभद्रनामके अनेक विद्वान् हुए हैं जिनमें उत्तरपुराणादिकके कर्ता गुणभद्र तो प्रसिद्ध ही हैं । शेष दूसरे गुणभद्र नामके अन्य विद्वानोंका यहां परिचय न देकर मलयकीर्तिके शिष्य गुणभद्रका ही परिचय दे रहा हूं। भ० गुणभद्र माथुरसंघी भ० मलयकीर्तिके शिष्य थे और अपने गुरुके बाद गोपाचलके पट्टपर प्रतिष्ठित हुए थे। इनकी रची हुई निम्न १५ कथाएं है जो देहली पंचायत मन्दिरके गुटका नं० १३-१४ में दी हुई हैं, जो संवत् १६०२ में श्रावणसुदी एकादशी सोमवारके दिन रोहतक नगरमें पातिशाह जलालुद्दीनके राज्यकालमें लिखा गया है। उन कथाओंके नाम इस प्रकार हैं--
१, “तहो गंदणु णंदणु हेमरा...उ इत्यादि" पाण्डव पुराण प्रशस्ति । २. "विक्कम-रायहो ववगय कालई........इत्यादि" हरिगंशपुराण प्रशस्ति । ३, तं जसकित्ति मुणिहिं उद्धरिय........ इत्यादि स्वयंभू हरिवंश पुराण प्रशस्ति । ४ जैन सिद्धान्त भास्कर भाग ११ किरण • में भ० यशःकीर्ति नामका लेख । ५ अथ संवत्सरेस्मिन् श्री नृप विक्रमादित्यराज्यात् संवत् १६०२ वर्षे श्रावण सुदि ११ सोमवासरे रोहितासशुभस्थाने पातिसाह जलालदी ( जलालुद्दीन ) राज्य प्रवर्तमाने ॥ छ ।