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सम्यक्त्वकौमुदी के कर्त्ता
श्रन्तर्कथा - साम्य - मदनपराजय में कतिपय अन्तर्कथा का समावेश कर के मूलकथाकी धारा विविध मुख सरस स्रोतों में प्रवाहित की गयी है और इस प्रकार एक अपूर्व रसकी श्रृष्टि हुई है, सम्यक्त्वकौमुदी में भी रस परिपाककी यह पद्धति अपनायी गयी दिखती है । इस प्रसङ्ग में सम्यक्त्वकौमुदीकारने अपनी रचना में यमदण्ड कोतवालके द्वारा राजाको सुनायी गयी सात अन्तर्कथाका निवेश तो किया ही है, कुछ अन्य अन्तर्कथा सूचक पद्य भी उद्धृत किये हैं जिनकी अन्तर्कथाओं का विस्तृत विवरण मदनपराजयगत अन्तर्कथाओं की तरह ही छोड़ दिया गया है। इस प्रकारके पद्य निम्न प्रकार हैं
(१) 'पराभवो न कर्तव्यो यादृशे तादृशे जने । तेन टिट्टिभमात्रेण समुद्रो व्याकुलीकृतः ॥ यह पद्य पञ्चतन्त्र मित्रभेदके' "शत्रोर्विक्रममज्ञात्वा... इत्यादि' ( ३३७ सं० ) पद्यका परिवर्तित रूप है, जिसमें टिट्टभ जैसे क्षुद्र जन्तु द्वारा समुद्र जैसे महामहिम व्यक्तित्वशालीकी पराभव कथा चित्रित की गयी है । परन्तु सम्यकत्वकौमुदीके कर्त्ता ने अपनी इस रचना में उल्लिखित पद्यसे सम्बन्धित कथावस्तुका तनिक भी विववरण न देकर उक्त परिवर्तित पद्यको ही उद्धृत कर दिया है । एक दूसरे पद्यमें भी इस प्रकारकी कथा वस्तु प्रतिबिम्बित हो रही है। जिसमें एक राजकुमारीके प्रसाद से भिक्षुकी मन कामनाकी पूर्ति नहीं होती है । प्रत्युत बाघके निमित्तसे वह मौतका शिकार बन जाता है । सम्यक्त्वकौमुदी के कर्त्ताने प्रस्तुत पद्यसे सम्बन्धित कथा-वस्तुका भी कोई विस्तृत विवरण नहीं दिया है । "अव्यापारेषु व्यापारं . . इत्यादि (पृष्ट ७० ) श्लोक 'पञ्चतन्त्र मित्रभेद' का है, जिसमें निष्प्रयोजन कील उखाड़ने वाले बन्दरकी कथा अन्तर्हित है । पर सम्यक्त्वकौमुदीकारने इस कथाका भी कोई पल्लवित रूप नहीं दिया है । मदनपराजय के कर्त्ताने भी अपनी रचनाओं में प्रस्तुत पद्यका समावेश किया है, परन्तु उन्होंने भी इस पद्यसे सम्बन्धित कथा रूपका कोई स्पष्ट विवरण नहीं दिया है । इसके साथ ही मदनपराजय ( पृ० ७८ ) में इस पद्यका स्वरूप भी निम्नप्रकार परिवर्तित उपलब्ध होता है ।
"अव्यापारेषु व्यापारं यो नरः कतुमिच्छति ।
स एव निधनं याति यथा राजा ककुद्रुमः ॥”
इस प्रकारके अनेक पद्य सुलभ हैं । तथा यह ध्यान देनेकी बात है कि “वरं बुद्धिर्ना साविद्या,...” ऐसे पद्य मदनपराजयमें भी पाये जाते हैं और सम्यकक्त्वकौमुदी तथा मदनपराजय के पाठों में कोई भेद नहीं है । इस प्रकार इन पद्योंसे सम्बन्धित कथाएं और उन्हें अपनी-अपनी रचनाओं में निवेश करनेके प्रकार संकेत करते हैं कि मदनपराजय और सम्यक्त्वकौमुदी के कर्ता एक ही हैं ।
१ पञ्चतन्त्र, मित्र भेद, बारहवीं कथा ।
२ "अन्यथा चिन्तित .. आदि" श्लोक० पृ० ३२ ।
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