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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
भाषा भी दोनोंकी करीब करीब एक सी ही है। जिस प्रकारकी सरल तथा सुवोध भाषाका मदनपराजय में प्रयोग हुआ है, सम्यक्त्वकौमुदी में भी भाषाकी सरलता और सुबोघता आपाततः स्पष्ट दिखलायी देती है। प्रायः सर्वत्र छोटे-छोटे वाक्योंका प्रयोग हुअा है। और बन्धकी प्रौढ़ि भी मदनपराजय की कोटिकी है । भाषा और शब्द-साम्यके लिए दोनों रचनाओंके निम्नाङ्कित स्थल विचारणीय हैं
(क) “सतत (तं) प्रवृत्तोत्सवा (वं) प्रभूतवर जिनालया (यं) जिनधर्माचारोत्सवसहितश्रावका (क) घनहरिततरुखण्डमण्डिता (तं)।"
(ख) "सर्वैः सभासदैवेष्टितो ( स च श्रेणिको)ऽमरराजवद्राजते ।" (ग) “अथ तेषामागमनमात्रेण तद्वनं सुशोभितं जातम् । तद्यथा--
"शुष्काशोककदम्वचूतवकुलाः..."आदि १८ तथा १६ श्लोक' ।"
पद्य-साम्य-मदनपराजयमें जिस प्रकार ग्रन्थान्तरोंके पद्य उद्धृत करके रचनाको पुष्ट, प्रभावपूर्ण और अलङ्कृत किया गया है, सम्यक्त्वकौमुदीमें भी ठीक यही पद्धति अपनायी गयी है इतना ही नहीं कुछ पद्योंको छोड़ कर दोनों ग्रन्थोंके उद्धृत पद्य प्रायः समान ही हैं। उदाहरणके लिए कतिपय पद्य निम्न प्रकार है
(१) “निद्रामुद्रितलोचनो मृगपतिर्यावद्गुहां सेवते
तावत् स्वैरममी चरन्तु हरिणाः स्वच्छन्दसंचारिणः। उन्निद्रस्यविधूतकेसरसटाभारस्य निर्गच्छतो
नादे श्रोत्रपथं गते हतधियां सन्त्येव दीर्घा दिशः ॥१२॥” (म०प०पृ०४-६) यही पद्य सम्यक्त्वकौमुदी पृष्ठ ८ पर 'शून्यादिशः' पाठान्तरके साथ पाया जाता है। (२) “दुराग्रहग्रहग्रस्ते विद्वान् पुसि करोति किम् ।
कृष्णपाषाणखण्डेषु मार्दवाय न तोयदः ॥” ( मदन-पराजय पृष्ठ १६) सम्यक्त्वकौमुदी पृ० १३ में यही पद्य 'कृष्णपाषाणखण्डस्य' पाठान्तरके साथ पाया जाता है । (३) "वशीकृतेन्द्रियग्रामः कृतज्ञो विनयान्वितः।
निष्कषाय प्रसन्नात्मा सम्यग्दृष्टिमहाशुचिः॥म० प० पृ० १३) यही पद्य सम्यक्त्वकौमुदी पृ० ६५ में 'निष्कषाय प्रशान्तात्मा' पाठान्तरके साथ मिलता है। इस प्रकार दशकों उदाहरण दिये जा सकते हैं।
१ मदनपराजय पृ० ८ पं०, २१-२, सम्यक्त्व कौमुदी पृ० १, ५० ७-९ । २ मदनप० पृ० ३, ५० १-२ सम्यक्त्वकी० पृ० १, पं० १२ . ३ मदनप० पृ० ११-२, प० २५-२८ तथा १.६ । सम्यक्त्व की पृ० ५६, पं० ७-८ ।