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जैन साहित्य और कहानी __ श्री प्रा. डा. जगदीशचन्द्र जैन, एम० ए०, पीएच० डी०
प्राचीन कालसे ही कहानी साहित्यका जीवन में बहुत ऊंचा स्थान रहा है। ऋग्वेद, ब्राह्मण, उपनिषद्, महाभारत, रामायण, श्रादि वैदिक ग्रंथोंमें अनेक शिक्षाप्रद श्राख्यान उपलब्ध होते हैं, जिनके द्वारा मनुष्य जीवनको ऊंचा उठानेका प्रयत्न किया गया है। इन कथा-कहानियोंका सबसे समृद्ध कोष है बौद्धों की जातक कथाएं । सीलोन, वर्मा आदि प्रदेशों में ये कथाएं इतनी लोकप्रिय हैं कि वहांके निवासी आज भी इन कथाओंको रात रातभर बैठकर बड़े चावसे सुनते हैं । इन कथाओं में बुद्ध के पूर्वजन्मकी घटनाओंका वर्णन है, और इनके दृश्य सांची, भरहुत आदि स्तूपोंकी दीवारों पर अंकित हैं, जिनका समय ईसाके पूर्व दूसरी शती माना जाता है।
प्राचीन कालमें जो नाना लोक कथाएं भारतवर्षमें प्रचलित थीं, उन्हें ब्राहःण, जैनों और बौद्धने अपने अपने धर्मग्रन्थों में स्थान देकर अपने सिद्धांतोंका प्रचार किया। बौद्धोंके पालि साहित्यकी तरह जैनोंका प्राकृत साहित्य भी कथा-कहानियोंका विपुल भण्डार है। जैन भिक्षु अपने धर्मका प्रचार करनेके लिए दूर दूर देशोंमें विहार करते थे । बृहत्कल्पभाष्यके अन्तर्गत जनपद-परीक्षा प्रकरणमें बताया है कि जैन भिक्षुको चाहिये कि वह श्रात्मशुद्धि के लिए तथा दूसरोंको धर्ममें स्थिर रखनेके लिए जनपद विहार करें तथा जनपद-विहार करनेवाले साधुको मगध, मालवा, महाराष्ट्र, लाट, कर्णाटक, द्रविड़; गौड़, विदर्भ आदि देशोंकी लोकभाषाओं में कुशल होना चाहिये, जिससे वह भिन्न भिन्न देशके लोगोंको उनकी भाषामें उपदेश दे सके ।
जैन साहित्यका प्राचीनतम भाग 'अागम' के नामसे कहा जाता है। दिगम्बर परम्पराके अनुसार अागम ग्रन्थोंका सर्वथा विच्छेद हो गया है, श्वेताम्बर परम्पराके अनुसार ये आगम विकृतरूपमें मौजूद हैं, और ११ अंग, १२ उपांग, १० प्रकीर्णक, ६ छेदसूत्र, ४ मूलसूत्र, नन्दि तथा अनुयोगद्वारके रूपमें अाजकल भी उपलब्ध हैं। ११ अंगोंके अन्तर्गत नायाधम्मकहा (ज्ञातृधर्म कथा) नामक पांचवें अंगमें ज्ञातृपुत्र महावीरकी अनेक धर्मकथाएं वर्णित हैं, जो बहुत रोचक और शिक्षाप्रद हैं। उपासकदशा नामक छठे अंगमें महावीरके उपासकोंकी कथाएं हैं। कथा साहित्यका सर्वोत्तम भाग आगम ग्रन्थोंकी टीका-टिप्पणियोंमें उपलब्ध होता है। ये टीका-टिप्पणियां नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका इन
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