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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
और स्वप्नशास्त्र श्रादि पर भी जैनाचार्योंने अपनी रचनाओं में पर्याप्त प्रकाश डाला है और अनेक मौलिक ग्रन्थ भी लिखे हैं । इस प्रसङ्गमें चन्द्रसेन मुनिका केवलज्ञान होरा, दामनन्दिके शिष्य भट्टवासरका श्रायज्ञानतिलक, चन्द्रोन्मीलन प्रश्न, भद्रबाहु निमित्तशास्त्र, अर्धकाण्ड, मुहूर्तदर्पण, जिनपाल गणीका स्वप्नविचार तथा दुर्लभराजकी स्वप्नचिन्तामणि, आदि उपयोगी ग्रन्थ हैं।
जैसा ऊपर कहा गया है, इस लेखमें संस्कृत साहित्यके विषयमें जैन विद्वानोंके मूल्यवान सहयोगका केवल दिग्दर्शन ही कराया गया है । संस्कृत साहित्यके प्रेमियोंको उन आदरणीय जैनविद्वानोंका कृतज्ञ ही होना चाहिए | हमारा यह कर्तव्य है कि हम हृदयसे इस महान् साहित्यसे परिचय प्राप्त करें और यथासम्भव उसका संस्कृत समाजमें प्रचार करें।
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