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संस्कृत साहित्य के विकास में जैन विद्वानोंका सहयोग महाराज मोघवर्ष ( प्रथम ) के समकालीन शाकटायन या पाल्यकीर्तिका शाकटायन( शब्दानुशासन ) व्याकरण भी महत्वपूर्ण रचना है । प्रस्तुत व्याकरण पर निम्नाङ्कित सात टीकाए उपलब्ध हैं
( १ ) अमोघवृत्ति - शाकटागनके शब्दानुशासन पर स्वयं सूत्रकार द्वारा लिखी गयी यह सर्वाधिक विस्तृत और महत्वपूर्ण टीका है । राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्षको लक्ष्यमें रखते हुए ही इसका उक्त नामकरण किया गया प्रतीत होता है । ( २ ) शाकटायन न्यास - श्रमोधवृत्ति पर प्रभाचन्द्राचार्य द्वारा विरचित यह न्यास है । इसके केवल दो अध्याय ही उपलब्ध हैं । ( ३ ) चिन्तामणि टीका ( लघीयसी वृत्ति ) – इसके रचयिता यक्षवर्मा हैं । और अमोघवृत्तिको संक्षिप्त करके ही इसकी रचना की गयी है । (४) मणि प्रकाशिका - इसके कर्ता जितसेनाचार्य हैं । ( ५ ) प्रक्रिया संग्रह —भट्टोजीदीक्षितकी सिद्धान्तकौमुदीकी पद्धतिपर लिखी गयी यह एक प्रक्रिया टीका है, इसके कर्ता श्रभयचन्द्र आचार्य है | ( ६ ) शाकटायन-टीका—भावसेन ' त्रैविद्यदेवने इसकी रचना की है । यह कातन्त्रको रूपमाला टीका के भी रचयिता हैं । ( ७ ) रूप - सिद्धि - लघुकौमुदीके समान यह एक अल्पकाय टीका है । इसके कर्ता दापाल (वि० ११ वीं श० ) मुनि हैं ।
आचार्य हेमचन्द्रका सिद्धहेम शब्दानुशासन भी महत्वपूर्ण रचना है । यह इतनी आकर्षक रचना रही है कि इसके आधारपर तैयार किये गये अनेक व्याकरण ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं । इनके अतिरिक्त अन्य अनेक जैन व्याकरण ग्रन्थ जैनाचार्योंने लिखे हैं और अनेक जैनेतर व्याकरण ग्रन्थोंपर महत्वपूर्ण टीकाएं भी लिखी हैं। पूज्यपादने पाणिनीय व्याकरणपर 'शब्दावतार' नामक एक न्यास लिखा था जो सम्प्रति अप्राप्य है और जैनाचार्यों द्वारा सारस्वत व्याकरणपर लिखित विभिन्न बीस टीकाएं आज भी उपलब्ध हैं ।
शर्ववर्मा कातंत्र व्याकरण भी एक सुबोध और संक्षिप्त व्याकरण है तथा इसपर भी विभिन्न चौदह टीकाएं प्राप्य हैं ।
अलङ्कार
अलंकार विषय में भी जैनाचार्योंकी महत्वपूर्ण रचनाएं उपलब्ध हैं । हेमचन्द्र और वाग्भटके काव्यानुशासन तथा वाग्भटका वाग्भटालंकार महत्वकी रचनाएं हैं । जितसेन श्राचार्यकी श्रलंकारचिन्तामणि और अमरचन्द्रकी काव्यकल्पलता बहुत ही सफल रचनाएं हैं ।
जैनेतर अलंकार शास्त्रों पर भी जैनाचार्यों की कतिपय टीकाएं पायी जाती हैं । काव्यप्रकाशके ऊपर भानुचन्द्रगणि, माणिक्यचन्द्र, जयनन्दिसूरि और यशोविजयगणि ( तपागच्छ ) की टीकाएं
१. जिनरत्नकोश ( भ० औ० रि० ६०, पूना ) ।
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