________________
भारतीय इतिहास और जैन शिलालेख श्री डा० ए० गेरीनोट, एम० ए० डी० लिट०
___ अक्सर विद्वान् कहा करते हैं कि, यद्यपि भारतवर्षीय साहित्य विपुल और विस्तीर्ण है, तथापि उसमें ऐतिहासिक ग्रंथ बहुत थोड़े हैं । और जो हैं, उनमें इतिहासके साथ दूसरी मनगढंत बातोंकी तथा दन्तकथाओंकी खिचड़ी कर दी गयी है । यह कथन यद्यपि ठीक है, तो भी भारतवर्षमें जो अगणित शिलालेख हैं, उनसे भारतवर्षके साहित्यमें जो इतिहासकी कमी है, वह बहुत अंशोंमें पूर्ण हो सकती है। इसके लिए जी० मेबल डफका भारतीय कालक्रम ( The Chronalogy of India) का पहला पृष्ठ
और विनसेंट ए० स्मिथ कृत भारतीय इतिहास ( The Histary of India) की पहली आवृत्तिका तेरहवां पृष्ठ पढ़ना चाहिये। दक्षिणके जैन शिलालेख--
सबसे अधिक शिलालेख दक्षिण भारतमें हैं। मि० ई० हुलश, मि० जे० एफ० फ्लीट और लूइस राईस, आदि विद्वानोंने साउथ इण्डिया इन्स्क्रिपशन इंडियन एन्टीक्वेरी, एपिग्राफिया कर्णाटिका, आदि ग्रन्थोंमें वहांके हजारों लेखोंका संग्रह किया है। ये शिलालेख शिलाओं तथा ताम्रपत्रोंपर संस्कृत, और पुरानी कन्नड़ आदि भाषाओंमें खुदे हुए हैं । प्राचीन कन्नड़के लेखोंमें जैनियोंके लेख बहुत अधिक हैं ; क्योंकि उत्तर कर्णाटक और मैसूर राज्यमें जैनियोंका निवास प्राचीन कालसे है।
उत्तर भारतमें जो संस्कृत और प्राकृत भाषाके लेख मिले हैं, वे प्राचीनता और उपयोगिताकी दृष्टि से बहुत महत्त्वके हैं। इन लेखोंमें भी जैन लेखोंकी संख्या बहुत अधिक है। सन् १९०८ में जो जैन शिलालेखोंकी रिपोर्ट मेरे द्वारा प्रकाशित की गयी है, उसमें मैंने सन् १९०७ के अंत तक प्रकाशित हुए समस्त जैन लेखोंके संग्रह करनेका प्रयत्न किया था । उक्त रिपोर्ट में ८५० लेखोंका संक्षिप्त पृथक्करण किया गया है। जिनमेंसे ८०९ लेख ऐसे हैं, जिनका समय उनपर लिखा हुआ है, अथवा दूसरे साक्षियोंसे मालूम कर लिया गया है। ये लेख ईस्वी सन् से २४२ वर्ष पूर्वसे लेकर ईस्वी सन् १८६६ तकके अर्थात् लगभग २२०० वर्षके हैं और जैन इतिहासके लिए बहुत ही उपयोगी साधन सामग्री हैं ।
२४३