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महावीर स्वामीकी पूर्व परम्परा होना शुरू हुआ था । अनेक ग्रन्थ इससे भी पीछे बने । पार्श्वनाथका इतिहास--
___उत्तराध्ययनसूत्र और सूत्रकृतांगसूत्रकी भूमिका में प्रा० जैकोबी लिखते हैं :- "पाली चातुय्याम" जिसे कि संस्कृतमें 'चातुर्याम' कहते हैं, प्राकृतमें 'चातुज्जाम' बोला जाता है । यह एक प्रसिद्ध जैन संज्ञा है जो कि पार्श्वनाथके चार व्रतोंको प्रकट करती है जिसके समक्ष ही महावीरके पंचमहाव्रत (पंचमहाव्वय ) कहे गये हैं। इस प्रकरणमें मैं समझता हूं कि, बौद्धोंने एक भ्रान्ति की है । अर्थात् उन्होंने महावीरको जो ज्ञातृपुत्र उपाधि लगायो है, वह वास्तवमें उनसे पूर्व हुए पार्श्वनाथके पीछे लगनी चाहिये थी। यह एक नगण्य भूल है । क्योंकि गौतम बुद्ध और बौद्ध प्राचार्य उपयुक्त उपाधिकी योजना निZथ धर्मके वर्णनमें तब तक कभी न करते, जब तक कि उन्होंने उसे पार्श्वनाथके अनुयायी लोगोंसे न सुनी होती। और यदि महावीरका धर्म बुद्धके समयमें भी निर्ग्रथोके द्वारा ही विशेष रूपसे प्रतिपालित होता तो भी वे ऐसी उपाधि कभी नहीं लगाते । इस प्रकार बौद्धोंकी भूलसे ही जैनधर्म सम्बन्धी इस दंतकथाकी सत्यताकी पुष्टि होती है कि महावीरके समयमें पार्श्वनाथके अनुयायो विद्यमान थे।"
"पार्श्वनाथका ऐतिहासिक महापुरुष होना संभव है । इस बातको सब मानते हैं और उनके अनुयायियों तथा मुख्यतया केशाका जो कि महावीरके समयमें जैनधर्मके नेता थे, जैनशास्त्रमें इस प्रकार वास्तविक रूपसे वृत्तान्त पाया जाता है कि उन शास्त्रोंको सत्यतामें सन्देह उत्पन्न होनेका कोई कारण ही नहीं दिखता।"
जैनधर्मके प्राचीन इतिहासकी रचनामें मेरा यही मुख्य उद्देश्य है कि, पार्श्वनाथके अनुयायी महावीरके समयमें विद्यमान् थे, यह दन्तकथा जिसको वर्तमान समयके सभी विद्वान् स्वीकार करते हैं; अधिकतर स्पष्ट हो जाय । पार्श्वनाथ और महावीरके अन्तरालमें जितना समय व्यतीत हुआ है उसके विषयमें जैकोबीने एक टिप्पण लिखा है । वह इस प्रकार है-"जैन ग्रन्थों में जो विवेचन किया है, उससे प्रकट होता है कि, पार्श्वनाथ और महावीरके बीचके कालमें यतिधर्मका आचरण शिथिल हो गया होगा। यह बात तभी संभव हो सकती है, जब कि अन्तिम दो तीर्थंकरोंके बीचका समय यथोचित रूपसे निश्चित किया जाय । इसके द्वारा पार्श्वनाथके २५० वर्ष पीछे महावीर हुए ऐसा जो सब मनुष्यों का अनुमान है, उसकी भली भांति पुष्टि होती है।"
"इस प्रकार पार्श्वनाथ और महावीरके जीवनचरित्रका विस्तारसे पठन करने पर उत्तरीय भारतकी राजनैतिक स्थिति स्पष्ट रूपसे प्रकट हो जाती है, क्योंकि उनके समयका निर्णय हो गया है । यहां तक शोधको ले जाना भारतके प्राचीन इतिहासकी सुदृढ़ भूमिकापर पहुंच जाना है । पश्चिमी
१-सैकरेड बुक्स ओफ ईष्ट भा.४५
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