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पौराणिक जैन इतिहास
इसीप्रकार श्री र०च० दत्तका अनुमान 'रामायण वैदिक घटनाका रूपक है, अर्थात् इसमें इन्द्र (राम) के द्वारा वृत्तसे मेघों (सीता) के उद्धारकी कथा है, भी उक्त युक्तियोंके कारण ही नहीं टिकता । वेदाह्य धर्म जैन अथवा बौद्ध त्रिकालमें भी वैदिक मान्यताके पोषक वर्णन को इतना महत्त्व न देते साथ ही साथ कल्पनाकी नूतनताके लिए लिखित प्रमाणोंकी उपेक्षा भी वाञ्छनीय नहीं है । जैसे कि जैन पुराण भी रामको कौरव पाण्डवोंका पूर्ववर्ती लिखते हैं तथापि कतिपय विद्वान इन सब साहित्यिक प्रमाणों की उपेक्षा करके महाभारतको रामायण से पहिले ले जाना चाहते हैं, अस्तु । जैनपुराणोंका मानवतापूर्ण सयुक्तिक वर्णन आजभी शोधकोंके मार्ग का श्रालोक हो सकता है ।
कृष्णचरित --
वैदिक मान्यता में वृन्दावनकी रासलीला का नायक युवक, कुरुक्षेत्रका महाशिक्षक वीराग्रणी तथा राजनीतिज्ञोंके कुलगुरु श्रीकृष्णकी कथाका जैनरूप भी बड़ा आकर्षक है। इसके अनुसार ये अन्तिम नारायण थे । यादववंशी महाराज वासुदेवके देवकीकी कुक्षिसे कृष्ण तथा रोहिणीसे राम ( बलदेव ) उत्पन्न हुए थे । मथुराधिप उग्रसेन, उनका पुत्रकंस, मगधाधिप जरासंध, रुक्मिणी, आदि रानियां तथा बहुत कुछ वर्णन समान है । अन्तमें द्वीपायन मुनिकी विराधना के कारण द्वारका जलकर भस्म होती है और धोखे में एक श्राखेटकके बाण से कृष्णजीका देहावसान होता है ।
वैलक्षण्य-
यदुवंश - का प्रारम्भ ययातिसे न हो कर मथुराके प्राचीनतम राजा ही से होता है जिसके वंश यदु नामका राजा हुआ था । इसके उत्तराधिकारी अपनेको यादव कहने लगे थे । यदुका पुत्र शुर था जिसके पुत्र शौरि तथा सुवीर थे। मथुरा राज्य सुवीरको देकर शौरिने कुशार्त देश में राज्य स्थापित किया था जहां उसके अन्धक वृष्णि, आदि पुत्र हुए तथा सुवीरके पुत्र भोजक वृष्ण कहलाये । पुत्रको राज्य देकर सुवीर अपने सिन्धुदेशके नगर सौवीरपुर में रहने लगा था उसके ही पुत्र पौत्र उग्रसेन तथा कंस थे ।
समुद्र विजय, अक्षोभ्य, स्तमित, सागर, हिमवान, ऐहल, धरण, पूर्ण, अभिचन्द्र तथा वासुदेव ये दश अन्धकवृष्णि के पुत्र थे । इनकी दोनों पुत्रियां कुन्ती तथा माद्री पाण्डु तथा दमघोष से विवाही थीं । कुन्तीके पुत्र पाण्डव थे तथा दमघोषका पुत्र शिशुपाल था । वासुदेवजीका जैन वर्णन बड़ा ही रोचक है । ये इतने सुन्दर थे कि स्त्रियां देखते ही इनपर मुग्ध हो जाती थीं । फलतः नागरिक ललनाओं के शीलको सुरक्षित रखने के लिए ही स्नेही बड़े भाई समुद्रविजयने इन्हें घर में रह कर ललित कलाओं
अभ्यास करने की प्रेरणा की थी। किन्तु एक कुटिल दासीने उनसे इस स्नेह कारागारके विषय में कह दिया । फलतः नगर के बाहर अपनी आत्महत्या की सूचना के साथ एक मुर्दे को जलाकर ये भाग निकले। तथा
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