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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
"महाराज रविने यह अनुशासन पत्र महानगर पलासिकमें स्थापित किया कि श्री जिनेन्द्रदेवकी प्रभावनाके लिए उस ग्रामकी आमदनीमेंसे प्रतिवर्ष कार्तिकी पूर्णिमाको श्री अष्टान्हिकोत्सव, जो लगातार आठ दिनों तक होता है, मनाया जाया करे; चातुर्मासके दिनोंमें साधुअोंका वैयावृत्य किया जाया करे और विद्वजन उस महानताका उपभोग न्यायानुमोदित रूपमें किया करें ।...धर्मामा ग्रामवासियों और नागरिकोंको निरन्तर जिनेन्द्रभगवान्की पूजा करनी चाहिये। जहां जिनेन्द्रकी सदैव पूजा की जाती है, वहां उस देशको समृद्धि होती है, नगर प्राधि-व्याधिके भयसे मुक्त रहते हैं और शासकगण शक्तिशाली होते हैं ।" ( हल्सी जिला बेलगांवका दानपत्र ) । गंगवंश-स्थापना--
श्री सिंहनन्द्याचार्य ने दक्षिणभारतमें गङ्ग साम्राज्य की स्थापना की थी। उत्तर भारतमें शुङ्ग, कण्वादि राजवंश वैदिक धर्मको प्रोत्साहन दे रहे थे । मौर्योंके साथ ही भारतकी अखंड राष्ट्रीयता खटाईमें पड़ गयी । महाभारत-कालीन स्पर्धा वैदिक शासकोंके हृदयोंमें अड्डा जमा चुकी थी। प्रत्येक शासक भरत चक्रवर्ती बननेकी धुनमें अकारण खून बहाता था। इस राजनैतिक परिस्थितिमें उत्तरके बहुत-से राजवंश भ्रष्ट होकर दक्षिणकी ओर चले गये । गङ्गवंशके संस्थापक ददिग और माधव भी उत्तर भारतसे ही दक्षिणमें पहुंचे थे । ददिग और माधव राजपुत्रोंने श्री सिंहनन्याचार्यसे जैनधर्मकी दीक्षा ली और प्रतिज्ञा की कि वे और उनकी सन्तति सदा ही जिनेन्द्रभक्ति और अहिंसाधर्मके प्रभावक रहेंगे । अपने वचनको उन्होंने खूब निभाया । उनके शासनकालमें जैनधर्म का विशेष अभ्युदय हुआ । श्रवण बेलगोलकी विश्वविख्यात् बाहुबलि गोम्मटदेवकी विशालकाय सुन्दर प्रतिमाका निर्माण गङ्ग सेनापति वीरवर चामुण्डरायने किया था।
यापनीयसंघ
यापनीय संघके प्राचार्योंने जैन संघोंमें पारस्परिक समुदार भावनाको बढ़ाया। श्रावक पारस्परिक अनैक्यसे परे थे । एक ही श्रावक उदारता पूर्वक सब ही सम्प्रदायोंके साधुओंको दान देता था। दक्षिण भारतमें शिल्पियोंने एक 'वीर पंचल' संस्था स्थापित की थी, जिसमें सुनार, लुहार, भरिया, बढ़ई और राज ( मैमार ) सम्मिलित थे। यह शिल्पी अपनेको शूद्र नहीं मानते थे, बल्कि विश्वकर्मा ब्राह्मण कहलाते थे। इनके नामके साथ 'श्रोमा' और 'अचारी' शब्दोंका प्रयोग होता था। प्रसिद्ध गोम्मटमूर्तिके एक शिल्पीका नाम 'विदिग अोज्झा' था। व्यापारियोंने संघोंकी स्थापना की थी।
१ कदम्बनरेश मृगेशवर्माका दानपत्र छपा है । उससे निग्रन्थ ( दिगम्बर ) और श्वेतपट ( श्वेताम्बर ) संघोंका अस्तित्व स्पष्ट है।
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