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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
परिणाम भयंकर हुआ । दि० जैनाचार्य मठों और मन्दिरोंमें तो पहलेसे ही रहने लगे थे मन्दिरों को जागीरें लगी हुई थीं। वह दिगम्बरी दीक्षा लेते थे, केशलोंच करते थे, और वस्त्र ग्रहण कर लेते थे । श्राहारके समय नग्न हो जाते थे । अोसवाल, खंडेलवाल, श्रादि भट्टारकों द्वारा जैनधर्म में दीक्षित की हुई जातियां हैं। इन भट्टारक लोगोंने एक धर्म-शासन व्यवस्था बना ली थी प्रत्येकका शासनक्षेत्र मण्डल कहलाता था। उस मण्डलके जैनियों धर्म-शासनाधिकारी भट्टारक 'मंडलाचार्य, कहा जाता था । मंडलाचार्यकी आज्ञानुसार ही विवाह, आदि सामाजिक कार्य होते थे, जिनके लिए वे भट्टारक श्रावकोंसे कर वसूल करते थे। प्रत्येक श्रावक अपनेको किसी न किसी भट्टारकके 'अन्वय' से सम्बन्धित बताता था । इस प्रथासे यह लाभ तो अवश्य हुअा कि प्रत्येक मंडलके जैनी सुसंगठित और धर्मरत रहे । बाहरके अाक्रमणका भय उनको नहीं रहा । भट्टारक म० उनको येनकेन प्रकारेण धर्ममें दृढ़ रखते थे । किन्तु सबसे महान् क्षति यह हुई कि जैन संघ लुप्त हो गया । उपजातियोंकी सृष्टिके कारण--
१. गुरू-परम्परा-प्रत्येक मंडलके गुरू (भट्टारक) अलग थे। इसलिए इस अाधारसे कोई कोई उपजाति अस्तित्वमें आयी । भट्टारकोंने उनं भक्तोंमें अनेक गुणोंका विधान करके उनका नामकरण किया । जैसे पंचम, चतुर्थ जातियां' । २. श्राजी वका के आधारसे भी उपजातियां बन गयीं, क्योंकि उस जातिमें वही आजीविका प्रचलित थी; जैसे कासार, सेतवाल जातियां । ३. श्रावास क्षेत्रकी अपेक्षासे अधिकांश जातियां अस्तित्वमें आयीं। अर्थात् जिस देश अथवा जिस ग्राममें उनके पूर्वजोंका आवास था, उसकी अपेक्षा उनका नामकरण हुआ; जैसे गोल्लदेशके गोलालारे, लम्बकांचन देशके लम्बकंचुक; खंडेला नगरके खंडेलवाल, श्रोसियाके अोसवाल; श्रीमालके श्रीमाली, इत्यादि । ४. प्राचीन कुलों और गुणों के वंशज होनेकी अपेक्षासे भी कुछ उपजातियां अस्तित्वमें अायी हैं। कौटिल्यने गणतंत्रोंको 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' लिखा है । अर्थात् वे वार्ता (कृषि, पशुपालन या वणिज ) और अस्त्र ( सैनिक वृत्ति ) से अपनी आजीविका अर्जित करते थे। उदाहरणार्थ अग्रेय गणतंत्र के वार्ता-उपजीवी वंशज आजकलके अग्रवाल हैं ।
कुछ लोगोंका ख्याल है कि खंडेलवाल आदि उपजातियां अनादि हैं, परंतु वस्तुतः बात ऐसी नहीं है । शास्त्रोंमें इनका उल्लेख नहीं मिलता। सिद्धान्त द्वारा अनादिता सिद्ध नहीं होती। अनादि
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१. मूर्ति और यंत्रलेखों में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं। २. कुंडनगर कृत ऐटीक्वटीज़ ऑफ कोल्हापुर स्टेट । एक शिलालेखमें पंचम जातिके श्रावकोंको पंचव्रतादि
संयुक्त होनेकारण पंचम लिखा है। २. कासार वर्तन बनानेका काम करते हैं ( बम्बईके प्राचीन जैनस्मारक )