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भारतीय इतिहास और जैन शिलालेख स्थापना की थी । मि० लूइस राईसके द्वारा संग्रह किये हुए संस्कृत तथा कन्नड़ भाषाके सैकड़ों शिलालेख श्रवणबेलगोला के पवित्रतम ऐतिहासिक वृत्तान्त प्रगट करते हैं । इस पहाड़पर सुप्रसिद्ध मंत्री चामुंडरायने गोम्मट्टेश्वरकी विशाल प्रतिमा स्थापित की थी । गोमट स्वामोकी दूसरी प्रतिमा कारकलमें शक संवत् १३५३ ( ई० सन् ० १४३२ ) में और तीसरी बेनूर में शक संवत् १५२५ ( ई० सन् १६०४ ) प्रतिष्ठित हुई थी ।
दक्षिण भारतके जुदे जुदे शिलालेख बहुत सी ऐतिहासिक बातोंको विशद करते हैं । हलेबीड एक शिलालेख से मालूम होता है कि, वहां गंगराज मंत्रीके पुत्र बोपने पार्श्वनाथका मन्दिर बनवाया था । और वहां बहुतसे प्रसिद्ध प्रसिद्ध श्राचार्योंका देहोत्सर्ग हुआ था । 'हनसोज' देशीयगणकी एक शाखाका स्थान था । हमचा [हुंम्मच] नामक स्थान में 'उवतिलक' नामक सुन्दर मन्दिर बनवाया गया था और उसे गंगराज कुमारी चत्तलदेवीने अपर्ण किया था । मलेयारका कनक-पर्वत कई शताब्दियों तक बहुत पवित्र समझा जाता था। इन सब बातोंका ज्ञान उक्त स्थानों में मिले हुए लेखों से होता है । स्फुट लेख-
उत्तर भारत के मुख्य शिलालेख श्राबू, गिरनार और शत्रुञ्जय पर्वत सम्बन्धी हैं । श्राबू पर्वत पर सबसे अधिक प्रसिद्ध मन्दिर दो हैं - एक आदिनाथका और दूसरा नेमिनाथका । पहला अणहिल्लपाटण के भक्तिवंत व्यापारी विमलशाहने वि० सं० १०८८ ( ईस्वी सन् २०३१ ) में बनवाया था और दूसरा चालुक्य ( सोलंकी ) वंशीय वाघेला राजा वीरधवल के सुप्रसिद्ध मंत्री तेजपालने और उसके भाई वस्तुपालने बनवाया था । उसके दोनों भाइयोंने एक मनोहर मन्दिर गिरनार पर्वतपर और कई मन्दिर शत्रुञ्जयपर बनवाये थे ।
ऐतिहासिक महत्व --
जैनियोंके शिलालेख और ताम्रलेख भारतके सामान्य इतिहासके लिए मी बहुत सहायक हैं । बहुत से राजाओं का पता केवल जैनियोंके ही लेखोंसे लगता है। जैसे कि, कलिंग (उड़ीसा) का राजा खारवेल | निश्चित रूपसे यह राजा जैनधर्मका अनुयायी था । उसके राज्य कालका एक विशाल शिलालेख स्वर्गीय पं० भगवानलाल इन्द्रजीने प्रकाशित किया था और उसके विषय में उन्होंने बहुत विवेचन किया था । उक्त शिलालेख 'रामो अरहंताणं णमो सम्वसिद्धाणं' इन शब्दोंसे प्रारम्भ होता है । उस पर मौर्य संवत् १६५ लिखा हुआ है । अर्थात् वह ईस्वी सन् से लगभग १५६-५७ वर्ष पहलेका । खारवेल की पहली रानी जैनियोंपर बहुत कृपा रखती थी। उसने जैन मुनियोंके लिए उदयगिरिमें एक गुफा बनवायी थी । दक्षिण भारत के राजाओं में मैसूरके पश्चिम श्रोरके गंगवंशीय राजा जैनधर्मके जानकार और अनुयायी थे । शिलालेखों के श्राधारसे प्रगट होनेवाली एक कथासे मालूम होता है कि, नन्दिसंघ के सिंहनन्दि नामक श्राचार्य ने गंगवंशका निर्माण किया था और इस वंशके बहुत से राजाओं के गुरु जैनाचार्य
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