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कारकलका भैररस राजवंश श्री पं० के० भुजबली शास्त्री, विद्याभूषण
कारकल मद्रास प्रान्तके दक्षिण कन्नड जिलेमें स्थित है। आजकल यह विशेष समृद्धिशाली नहीं है; सिर्फ ताल्लुकेका प्रधान स्थान मात्र है । यही कारकल ईसाकी १३वीं शतीसे लेकर १७वीं शती तक अर्थात् लगभग ५०० वर्ष पर्यन्त विशेष समृद्धिशाली रहा है। इन शतियोंमें यहांपर जैन धर्मानुयायी भैररस नामक एक प्राचीन राजवंश शासन करता रहा है। प्रारंभमें तो यह वंश स्वतंत्र ही था। पर पीछे इसे होयसल, विजयनगर आदि कर्णाटकके अन्य बलिष्ठ प्रधान शासकोंकी अधीनतामें रहना पड़ा। बल्कि उस जमानेमें इस जिलेमें बंग, चौट, अजिल, सावंत, मूल, तोलहार, बिन्नाण, कोन्नार, भारस, होन्नय, कंबलि आदिके वंशज भी छोटे छोटे राज्य स्थापित करके भिन्न-भिन्न प्रदेशोंमें शासन करते रहे हैं । इन राजवंशोंमेंसे अजिल, चौट, आदिके वंशजोंने भी जैनधर्मकी पर्याप्त सेवा की है । भैररस वंश
इसी भैररस वंशमें उत्पन्न पाण्ड्य राजा विरचित 'भव्यानन्दशास्त्र' से यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि कारकलके भैररस वंशने 'हुंच' में नया राज्य स्थापित किया, जो कि वहां पर दीर्घकाल तक राज्य करने वाले राजा जिनदत्तरायके वंशकी ही एक शाखा थी। 'जिनदत्तरायचरित'और हुंचके कतिपय लेखोंसे' इस वंशका परिचय निम्न प्रकार मिलता है
"प्राचीन कालमें उत्तरमधुरा [ वर्तमान मथुरा ] के सुविख्यात उग्रवंशमें वीरनारायण, आदि अनेक शासक हुए हैं । इसी वंशमें राजा 'साकार' हुआ था, जो एक भील लड़कीपर आसक्त होकर अपनी सहधर्मिणी रानो श्रीयला एवं पुत्र जिनदत्तरायसे भी उदासीन हो गया था । फलस्वरूप एक रोज उक्त भीलकी लड़की पद्मिनीके दुरुपदेशसे वह अपने सुयोग्य पुत्र जिनदत्तराय तकको मरवा डालनेके लिए उतारू हो गया था ; क्योंकि जिनदत्त के जीवित रहते भीलनीके पुत्र मारिदत्तको राज्य नहीं मिल सकता था । पर इस षड्यंत्रका पता अपने गुरु सिद्धान्तकीर्तिके द्वारा रानी श्रीयलाको पहले ही लग गया था । श्रीयलाने कुलदेवी पद्मावतीकी प्रतिमाके साथ प्रियपुत्र जिनदत्तरायको तुरंत हो मधुरासे हटा दिया ।
१ देखें-नगर संबन्धी लेख नं० ५८ आदि ।
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