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वर्णो-अभिनन्दन-ग्रन्थ
वैदिक धर्मग्रंथोंने भी इनको अवतार रूपसे पूज्य पुरुष माना है। घोरातिघोर तप करके इन्होंने कैवल्य प्राप्ति की थी तथा सर्वज्ञ होकर जैन धर्मका उपदेश दिया था। श्री ऋषभदेवके कार्य--
____ मुनि दीक्षा ग्रहण करनेके पहिले उन्होंने अपने आचरण तथा शिक्षा द्वारा देश विश्वको व्याकरण, तर्क, छन्द, गणित, साहित्य, संगीत, नृत्य चित्रण, निर्माण, वास्तु, औषधि, प्राणिशास्त्र, आदिका प्रामाणिक उपदेश दिया था। कृषि तथा वाणिज्य उन्होंने सिखाया, भूमिको देश, जनपद, आदि विभागोंमें विभक्त किया, नगर तथा पुरोंको बसाया, समस्त ललित कलाओंका उपदेश दिया। ईखका रस निकालना सिखानेके कारण ये 'इक्ष्वाकु' कहलाये। मानव समाजको इन्होंने कर्मानुसार क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र इन तीन वणों में विभक्त किया था। इनके पुत्र भरत चक्रवर्तीने अनिच्छापूर्वक ब्राह्मण वर्णकी आगे चलकर व्यवस्था की थी।
जैन मान्यतानुसार ऋषभदेव अरबों ( ८२ हजार वर्ष कम लगभग एक सागर ) वर्ष पहिले हुये थे । ऐतिहासिक विद्वान् इनके समय तथा ऐतिहासिकताका निर्णय करनेके लिए प्रयत्नशील हैं। इतना निश्चित है कि ऋषभदेवकी पूज्यता अति प्राचीन है बौद्ध ग्रन्थों ने भी उनका इस रूपसे उल्लेख किया है। फलतः इसका विगत बार विचार करना यहां शक्य नहीं है। शेष तेईस तीर्थङ्कर--
भगवान् ऋषभदेवके बाद सर्वश्री अजित, शंभव, अभिनन्दन, सुमति, पद्म, सुपार्श्व, चन्द्र, पुष्पदन्त, शीतल, श्रेयान्स, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थ, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व तथा वर्द्धमान ये तेइस तीर्थकर और हुए हैं। जिन्होंने समय समय पर जैनधर्मरूपी मसालको उठाकर जगको श्रालोकित किया है। इनके जीवन चरित्र समान हैं । सबही अनेक पूर्व जन्मोंमें साधना द्वारा आत्मविकास करते हैं अन्तमें उत्तम स्वर्गका जीवन व्यतीत करके तीर्थङ्कर रूपसे गर्भ में आते हैं । इन्द्रादि देव उनके गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान तथा मोक्ष कल्याणोंको मनाते हैं । वे अपने अन्तिम भवमें तीनों ज्ञानों के साथ उच्चकुलमें उत्पन्न होते हैं, निरपवाद सदाचारी, दयालु तथा विचारक होते हैं । विशेष वय आते ही संसारसे विरक्त हो कर तप करते हैं, केवली होकर संसार दावानल में पड़ी मानवताको कर्तव्य तथा नैतिकताका उपदेश देते हैं। तथा अन्तमें विनश्वर शरीरको त्यागकर सिद्ध शिला पर चले जाते हैं जहां पर अनन्त ज्ञान, दर्शन, सुख एवं वीर्य हैं । अरिष्टनेमि
यादवकुमार नेमिनाथका जीवन करुणरससे प्राप्लावित है, इसी कारण उसने अधिकतम
१-न्याय बिन्दु, आदि ग्रन्थ ।