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वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ
देश पहुंचे और राजपुत्रीके स्वयंवर मण्डपमें जा पहुंचे । कैकयीने इन्हें ही वरण किया फलतः शेष राजाओं से घोर संग्राम हुना जिसमें कैकयीने सारथिका काम किया और पतिकी विजयका कारण हुई । राजाने दो वर मांगनेको कहा जिन्हें कैकयीने उचित समयपर लेनेकी बात कह कर छोड़ दिया । और रामके अभिषेक के समय रामको वनवास तथा भरतको राज्य मांगा ।
रामसीता विवाह प्रसंग भी भिन्न है । मयूरमति म्लेच्छ राजा श्रंशरङ्गलने जनकके ऊपर आक्रमण किया । भीत विदेहराजने दशरथसे सहायता मांगी। राम और लक्ष्मण सहायताको गये तथा म्लेच्छोंको अकेले ही मार भगाया । कृतज्ञतामें जनकने सीता राम से व्याहनेका वचन दिया। नारद सीता के सौन्दर्य पर आकृष्ट थे अतः उसे देखने गये । दर्पण के सामने खड़ी सीता दढियल विरूप प्रतिबिम्ब देखते ही डराकर भाग गयी । नारदने भामण्डलको सीता से विवाह करनेके लिए उकसाया, चन्द्रगतिने सीताको पुत्रवधू रूपसे मांगा किन्तु पूर्व प्रतिज्ञावश जनक उसे स्वीकार न कर सके । फलतः सीता के स्वयंवर में वज्रावर्त तथा सागरावर्त धनुषों के चढाने की समस्या उत्पन्न की गयी और राम-लक्ष्मण ही सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हुए ।
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जटायु कथा भी भिन्न है । दण्डकारण्य में रहते समय राम मुनियोंकी प्रतीक्षा कर रहे थे कि उसी समय गुप्ति और सुगुप्ति मुनि एक मासके उपवासके बाद वहांसे निकले । रामने उन्हें आहारदान दिया । वृक्षपर बैठा गिद्ध इससे इतना प्रभावित हुआ कि वह मुनियोंके चरण में गिर पड़ा। दया करके मुनियोंने उसे श्रावकाचारका उपदेश दिया, जिसे उसने ग्रहण भी किया ।
सीता हरणकी कथा भी दूसरे रूपमें है । वन में लक्ष्मणको सूर्यहास्य खड्गकी गंध आयी जिसे लेकर उन्होंने एक वं सोंके झुण्डपर परखा । छूते ही वह कट गया और उसमें सूर्य हास्यके लिए तप लोन खरदूषणका पुत्र शम्बूक भी कट गया । प्रतिदिनकी भांति भोजन लेकर श्रानेपर माता चन्द्रनखाने अपने पुत्रको मरा पाया । घातकका पता लगाने को निकलने पर उसने दोनों भाइयोंको देखा और उनपर मोहित हो गयी । पमानित हुई फलतः युद्ध हुआ । जैन मान्यतामें खरदूषण एक व्यक्ति है । रामायणकी शूद शम्बूक की हत्या के अनुचित कार्य से जैनपुराणोने रामको खूब बचाया है । जब रावण अपने बहनोईकी सहायतार्थ रहा था तो उसने विमान में से सीताको देखा, मोहित होकर लक्ष्मणका आर्तनाद किया जिसे सुनते ही राम सहायतार्थ दोड़ गये और वह सीताको ले भागा ।
विराध नामक दैत्यको वनमें भाइयोंने मारा था किन्तु जैन कथानुसार पटललंका के राजा विराधितने लक्ष्मणकी खरदूषण के विरुद्ध सहायता की थी और सीताहरण के बाद शोक संतप्त भाइयोंका मार्ग प्रदर्शन किया था ।
सबसे बड़ा वैलक्षण्य तो यह है कि जैन कथामें किष्कन्धाके सुग्रीव, आदि वानर रावण के
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