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कुण्डलपुर अतिशय क्षेत्र अवशिष्ट बचे बहुमूल्य स्मारकों में से है । इस स्थानके प्रशान्त वातावरण से प्रत्येक व्यक्ति अत्यन्त प्रभावित होता है, यहां पर बैठे हुए भगवान महावीर प्रेम, अहिंसा और सत्यके अविनश्वर सिद्धान्तका उपदेश देते हुसे प्रतीत होते हैं।
शिलालेख
यहां ऐसे बहुत से स्थान हैं जिन्हें यदि खोदा जाय तो महत्त्व के ऐतिहासिक तथ्य प्रकट हो सकते हैं और इस स्थान के प्राचीन इतिहासपर प्रकाश डाल सकते हैं। यहां मरम्मत और नव-निर्माणकी त्यन्त श्रावश्यकता है। दो मन्दिर, जो सम्भवतः छठी शतीके हैं, ढहकर ढेर हो गये हैं उनकी मरम्मत होना जरूरी है ।
सातवीं से ग्यारहवीं शती तकके बीच में इस स्थानकी भाग्यरेखाको बतलानेवाला कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है । दमोह प्रदेशके रायपुराके निवासी सिंघई मनसुखभाईने वि० सं० १९८३ में महावीरकी उक्त मूर्तिकी प्रतिष्ठा करायी थी । इससे स्पष्ट है कि उस समय तक यह स्थान अच्छी तरह प्रसिद्ध हो चुका था । एक गुमठी ( लघु-मन्दिर ) में एक शिलालेख सं० १५०१ का तथा दूसरा सं० १५३२ का पाया गया है । यहां १६वीं शतीकी बहुतसी मूर्तियां हैं जो आज भी अच्छी हालत में हैं । इस तरह ग्यारहवींसे सोलहवीं शतीतक की ऐतिहासिक शृङ्खला अखण्डित रूपमें मिलती है ।
ऐतिहासिक तलघरा --
बड़े बाबा मन्दिरके पीछे एक बरामदा है, जो ऐतिहासिक शृङ्खलाकी प्राप्य कड़ियोंको जोड़ने में मदद दे सकता है; किन्तु यह बन्द है । इस मन्दिरके नीचे एक बड़ा अन्धकारपूर्ण भौंरा (भूमिघर ) है । इसका मंह भी बन्द है । कहा जाता है कि बड़े बाबा की मूर्तिके जानुत्रों के बीचमें एक छेद था । यदि इसमें कोई सिक्का डाला जाता था तो वह एक विचित्र शब्द करता हुआ किसी गुप्त स्थानमें चला जाता था । उसमें सिक्का डालना व्यर्थ समझकर प्रबन्धकोंने लगभग पन्द्रह वर्ष पूर्व इस छेदको बन्द करा दिया । किसी ने यह खोज करनेका प्रयत्न नहीं किया कि सिक्का कहां चला जाता है। ऐसा विश्वास किया जाता है। कि सिक्का अवश्य ही नीचेके भौंयरेमें चला जाता । यदि उस भौंरेको खोला जाय तो प्राचीन सिक्कोंका एक ढेर निकल सकता है और तब छठी शतीसे लेकर आजतकका इतिहास खोज निकालना कठिन नहीं होगा |
फतहपुर --
कुण्डलपुर से लगभग आधे मीलकी दूरी पर फतहपुर नामका एक छोटा सा गांव है। यहां पर 'रुक्मनी मठ' के नाम से प्रसिद्ध जैन मन्दिरके अवशेष पाये जाते हैं । यह मन्दिर छठी शती में बनाया
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