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कुण्डलपुर अतिशयक्षेत्र श्री सत्यप्रकाश
जी० आई० पी० रेलवेकी बीना-कटनी ब्रांच पर दमोह नामका रेल्वे स्टेशन है । दमोहसे लगभग चौबीस मील पर कुण्डलपुर एक छोटा सा गांव है । ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह स्थान अद्भुत बातोंका केन्द्र है, इसो लिए जैन इसे अतिशयक्षेत्र कहते हैं ।
___ दमोहसे कुण्डलपुरकी यात्रा बैलगाड़ी, टांगा या प्राईवेट कार से की जाती है। सड़क पक्की नहीं है। यात्रियोंकी सुविधाके लिए राष्ट्रीय सरकार की सहातायसे दमोहकी जिला कौंसिल पक्की सड़क बनानेका विचार कर रही है । जब उसका यह विचार क्रियात्मक रूप धारण करेगा तो निश्चय ही स्थान बाहिरी दुनियां में एक महान आकर्षण उत्पन्न करेगा।
प्रकृतिका यह सुरम्य प्रदेश घोड़ेके नालके श्राकारकी सुन्दर पहाड़ियोंसे घिरा हुआ है और प्रतिवर्ष चौबीसवें तीर्थङ्क र वर्धमान महावीरकी अभ्यर्थना करनेके लिए हजारों जैन यात्रियोंको श्राकृष्ट करता है । पहाड़ियों के बीच में एक सुन्दर तालाब है जिसे 'वर्धमान सागर' कहते हैं । इसके चारों ओर तथा पहाड़ियों पर बने हुए अंठावन जैन मन्दिरोंका व्यूह इन्द्र धनुषके रूपमें इस तालाबमें प्रतिबिम्वित होता है । इन मन्दिरोंका नकशा सुन्दर है और इनकी सजावट बहुमूल्य है। ये मन्दिर केवल अपनी श्रेष्ठता, सुन्दरता
और कलापूर्ण निर्माणके लिए ही स्मरणीय नहीं हैं, किन्तु अपने ऐतिहासिक महत्त्वके लिए भी स्मरणीय हैं । वे अपने अन्दर १४०० वर्ष प्राचीन जैन संस्कृति और सभ्यताके इतिहासको सुरक्षित किये हैं । बड़ेबाबा-( महावीर ) मन्दिर--
यहांका मुख्य मन्दिर 'बड़े बाबाका मन्दिर के नामसे प्रसिद्ध है । यह घोड़ेके नालके श्राकारकी पहाड़ियों के बीचमें समुद्रको सतहसे तीन हजार फीटकी ऊंचाईपर स्थित है । इस मन्दिरमें वर्तमान महावीरकी दीर्घकाय मूर्ति स्थापित है, जो सुन्दर पद्मासन प्राकृतिमें एक पत्थरको काटकर बनायी गयी है । यह मूर्ति बारह फीट ऊंची है और तीन फीट ऊंचे श्रासनपर स्थित है । शुद्ध कलामयता,सौन्दर्य और आकारकी स्पष्टताकी दृष्टि से समस्त भारतमें इसकी समकक्ष दूसरी मूर्तियां कम हैं। और जैन कला तथा सभ्यताके