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ग्वालियरका तोमरवंश और उसकी कला है । यह प्रतिमा त्रिशला माताकी ज्ञात होती है । ३ नम्बरके प्रतिमा - समूह में एक स्त्री- पुरुष तथा बालक हैं । यह संभवत: महाराज सिद्वार्थ, माता त्रिशला तथा महावीर स्वामी की हैं।
उत्तर पश्चिमकी मूर्तियां-
उत्तर पश्चिम समूहमें केवल आदिनाथकी एक प्रतिमा महत्वपूर्ण है क्योंकि इस पर सं० १५२७ का एक अभिलेख खुदा हुआ है । इसी प्रकार उत्तर-पूर्व समूह भी कला की दृष्टिसे महत्त्वहीन है । मूर्तियां छोटी छोटी हैं और उन पर कोई लेख नहीं है ।
दक्षिण पूर्वी कलामय विशाल मूर्तियां-
दक्षिण-पूर्वी समूह मूर्तिकलाकी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । यह मूर्ति समूह फूलबागके ग्वालियर दरवाजेसे निकलते ही लगभग आधमील तक चट्टानोंपर खुदी हुई दिखती हैं। इनमें से लगभग २० प्रतिमाएं २० फुट से ३० फुट तक ऊंची हैं और इतनी ही ८ से १५ फुट तक ऊंची हैं। इनमें आदिनाथ नेमिनाथ, सुपद्म (पद्मप्रभु ), चन्द्रप्रभु, सम्भू ( संभव ) नाथ, नेमिनाथ, महावीर, कुम्भ ( कुन्थ ) नाथ की मूर्तियां हैं जिनमें से कुछ पर संवत् १५२५ से १५३० तकके अभिलेख खुदे हैं ।
जैसा पहले लिखा जा चुका है ड्र' गरेन्द्रसिंह तथा कोर्तिसिंह के शासनकाल में ईसवी सन १४४० तथा १४७३ के बीचमें ग्वालियर गढ़की संपूर्ण प्रतिमाओं का निर्माण हुआ है । इस विशाल गढ़की प्रायः प्रत्येक चट्टानको खोदकर उत्कीर्णकने अपने अपार धैर्यका परिचय दिया है और इन दो नरेशों के राज्यमें जैन-धर्मको जो प्रश्रय मिला और उसके द्वारा मूर्तिकला का जो विकास हुआ उसकी ये भावमयी प्रतिमाएं प्रतीक हैं। तीस वर्ष के थोड़े समय में ही गढ़की प्रत्येक मूक एवं बेडौल चट्टान महानता, शांति एवं तपस्या की भावना मुखरित हो उठी । प्रत्येक निर्माणकर्ता ऐसी प्रतिमाका निर्माण कराना चाहता था जो उसकी श्रद्धा एवं भक्ति के अनुपात में ही विशाल हो और उत्कीर्णकने उस विशालतामें सौन्दर्यकी पुट देकर कलाकी पूर्व कृतियां खड़ी कर दीं। छोटी मूर्तियों में जिस बारीकी एवं कौशलकी आवश्यकता होती है, वह और अनुपात इन प्रतिमाओं में अधिकतर दिखायी देता है ।
मूर्तिभञ्जक बाबर
इन मूर्तियोंके निर्माणके लगभग ६० वर्ष पश्चात् ही बाबरकी वक्रदृष्टि इनपर पड़ी । सन् १५२७ में उसने उरवाही द्वारकी प्रतिमाओं को ध्वस्त कराया। इस घटनाका बाबर ने अपनी आत्मकथामें बड़े गौरवके साथ उल्लेख किया है । बाबर के साथियोंने उन मूर्तियों के मुख तोड़ दिये थे जो पीछे से जैनियों द्वारा बनवा दिये गये । अस्तु ।
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