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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
विद्वानोंने भी अन्तिम दोनों तीर्थंकरोंको ऐतिहासिक महापुरुष स्वीकार किया है। और ज्यों ज्यों जैनियों के प्राचीन ग्रंथ देखने में श्रावें गे. त्यों त्यों वे इनसे भी पहिले होनेवाले तीर्थंकरों के अस्तित्वको भी प्रायः स्वीकार कर लेंगे। भारतकी प्राचीन राज-नैतिक और सामाजिक स्थितिपर जो जैन और बौद्ध कथाओंसे प्रकाश पड़ता है उसकी उपेक्षा करना उचित नहीं है । इन कथाओंका बहुत सूक्ष्म दृष्टिसे अनुसन्धान किया जाना चाहिये । पौराणिक जैन और बौद्ध कथाओंको एकत्र करने से भारतका लुप्तप्राय प्राचीन इतिहास किस प्रकार प्रकाशमें आकर सदा के लिए निश्चित हो सकता है, यह बात मैंने इस ग्रन्थमें दरसा दी है।"
"जैन और बौद्ध दोनों धर्म एक ही भूमि पर उत्पन्न हुए हैं, इस कारण उनकी ऐतिहासिक कथाए भी एक सी हैं। विना यथेष्ट कारणके हमें इन दंतकथात्रोंपर अविश्वास नहीं करना चाहिये । हमें उनका अनुसन्धान तुलनात्मक पद्धतिसे और बारीकीसे करना चाहिये । जब सब प्रकारकी दन्तकथानों और उनके उल्लेखोंका पठन तथा तुलना की जायगी, तभी हमें कुछ ऐतिहासिक रहस्य मालूम हो सकते हैं, अन्यथा भारतके प्राचीन इतिहासका कभी निर्णय नहीं हो सकेगा।"
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