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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
का लाञ्छल वृषभ है । जैनमूर्तियां अधिकतर (मध्यकालीन ) अकेली नहीं होती। इनमें विशिष्ट मूर्तिके समीप अनेक अनुचरांकी श्राकृतियां उत्कीर्ण होती हैं जिनमें चमरधारक किनारों पर खड़े होते हैं, उपासक झुके होते हैं । इनके अतिरिक्त गजारोही, सजवाही, आदि अनेक पार्षद भी सजग खिंचे होते हैं । स्वयं तीर्थंकर छत्रके नीचे बैठे होते हैं । जैन कलामें भी बौद्ध कलाकी ही भांति यक्षोंकी परम्पराका समावेश हुअा है । जैन मूर्तियोंकी पूजाके अतिरिक्त इस संप्रदायमें एक और वस्तुकी भी पूजा हुअा करती थी । यह एक प्रकारका प्रस्तर फलक होता था जिसे 'अायागपट' कहते थे और जिसकी भूमि स्तूप, तोरण और अन्य प्राकृतियोंसे भरी होती थी। इसके अनेक नमूने मथुरा और लखनऊके संग्रहालयों में सुरक्षित हैं ।
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