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मथुरासे प्राप्त दो नवीन जैन अभिलेख
इस समय लखनऊ संग्रहालयमें हैं। इसी प्रकारका एक अत्यन्त मनोहर अायागपट्ट ( मथुरा म्यू० नं० क्यू. २ ) वसु नामकी वेश्याने, जो लवणशोभिकाकी लड़की थी, दानमें दिया । वेणी नामक श्रेष्ठीकी धर्मपत्नी कुमारमित्राने एक सर्वतोभद्रिका प्रतिमाकी स्थापना करवायी और सुचिलकी स्त्रीने शांतिनाथ भगवान् की प्रतिमा दानमें दी। मणिकार जयभट्टिकी दुहिता तथा लोहवणिज फल्गुदेवकी धर्मपत्नी मित्राने वाचक आर्यसिंहकी प्रेरणासे एक विशाल जिन प्रतिमाका दान दिया । आचार्य बलदत्तकी शिष्या 'तपस्विनी' कुमारमित्राने एक तीर्थंकर मूर्तिकी स्थापना करवायी। ग्रामिक जयनागकी कुटुम्बिनी तथा ग्रामिक जयदेवकी पुत्रवधूने सं० ४० ( = ११८ ई० ) में एक शिलास्तंभका दान दिया । गुहदत्तकी पुत्री तथा धनहस्तकी पत्नीने धर्मार्थ नामक एक श्रमणके उपदेशसे एक शिलापट्टका दान किया, जिसपर स्त्प-पूजाका दृश्य अंकित है । श्राविका दत्ताने सं० २० ( = ६८ ई० ) में वर्धमान प्रतिमाको प्रतिष्ठापित किया । राज्यवसुकी स्त्री तथा देविलकी माता विजयश्रीने एक मासका उपवास करनेके बाद सं० ५० ( = १२८ ई० ) में भगवान् वर्धमान की प्रतिमाकी स्थापना करायी थी । इस प्रकारके अनेक उदाहरण मिलते हैं जिनसे इस बातका स्पष्ट पता चलता है कि प्राचीन मथुरामें जैनधर्मकी उन्नतिमें महिलाओंका बहुत बड़ा भाग था ।
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