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वर्णी-अभिनन्दन ग्रन्थ
समय पाटलिपुत्र न होकर राजगृह ( राजगिरि ) थी। अजातशत्रु बड़ा ही महत्वाकांक्षी, साम्राज्यवादी
और गणतंत्रोंका शत्रु था । उसने गंगाके उत्तर में स्थित 'वजिसंघ' और उसके सहायक मल्ल-संघको दस वर्षके भीषण युद्ध के बाद परास्त किया था । अतः राजगृहके निकट पड़ोसमें मल्लोंकी राजधानी पावाका होना राजनैतिक दृष्टिसे बिल्कुल असंभव है । और मगध तथा काशी दोनों पर अधिकार रखनेवाले अजात शत्रुके समयमें गंगाके दक्षिणमें मल्ल राज्यका विस्तार उससे भी अधिक असंभव था।
२. 'महापरिनिब्बानसुत्तान्त से तत्कालीन भूगोल और उस समयके मागौंकी दिशाएं स्पष्ट मालूम होती हैं । दक्षिण-विहारमें स्थित राजगृहसे प्रारम्भ होनेवाला मार्ग उत्तरमें चलकर गंगाको पार्टीलपुत्र पर पार करता था। इसके बाद वह वैशाली (उत्तर विहारका मुजफ्फरपुर जिला) पहंचता था । उसी मार्ग पर पश्चिमोत्तरमें चलकर भोगनगर और कुशीनगरके बीचमें पावापुरी पड़ती थी ! भगवान् बुद्ध बीमारीकी अवस्थामें भी पावासे चलकर पैदल एक दिनमें कुशीनगर पहुंचे थे । राजगृहके निकटस्थ वर्तमान पावा कुशीनगरसे दस मीलसे अधिककी दूरी पर है; अतः यह वास्तविक पावा नहीं हो सकती ।
३. वर्तमान पावापुरीमें प्राचीन नगर अथवा धर्मस्थानके कोई अवशेष नहीं मिलते हैं। वर्तमान मंदिरादि प्रायः अाधुनिक हैं । यह बात इस स्थानकी प्राचीनतामें सन्देह उत्पन्न करती है । वर्तमान पावा संभवतः मुसलिम शासनके समय स्थानान्तरित हुई मालूम होती है । इसको भगवान महावीरकी निर्वाण भूमि माननेमें एक बात कारण हो सकती है । यह नालन्दाके अति निकट है; संभवतः उनकी अंतिम यात्रा यहीं से प्रारम्भ हुई हो । परन्तु उनका देहावसान मल्लोंकी राजधानी पावामें ही हश्रा था।
१, पावा की ओर अभी बहुत कम लोगों का ध्यान गया है। संभवतः अपने अज्ञान और मुसलिम आतंक के कारण जैन जनता ने इसका परित्याग कर दिया हो । परन्तु अब ऐतिहासिक चेतना स्थानीय जनता में जागृत हो रही है और गत वर्ष वहां पावा हाई स्कूल नामक विद्यालय खोला गया । पास के ही कुशीनगर में सरकार का ओर से खनन कार्य हुआ है और श्रीमन्त बिरलाजी ने कई भव्य इमारतेंबनवा दी हैं । पावा अभी सरकार और श्रद्धालु श्रीमतों की प्रतीक्षा कर रही है।
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