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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
महाकवि पम्प--
__इस राज्यकालमें कर्णाटक जैनधर्मका सुदृढ़ गढ़ था। तथा जैनाचार्योंको यह भली भांति स्मरण था कि उनके परमगुरु तीर्थकरने जनपदकी भाषाओं में धर्मोपदेश दिया था। परिणाम स्वरूप १० वीं शतीमें हम कनारी लेखकोंकी भरमार पाते है । जिनमें जैनी ही अधिक थे। इनमें प्राचीनतम तथा प्रधानतम महाकवि पम्प थे इनका जन्म ९०२ ई० में हुआ था। आन्ध्र देशके निवासी होकर भी कनारी भाषाके आदि कवि हुए थे । इन्होंने अपनी कृति आदिपुराणको ९४१ ई० में समाप्त किया था, यह जैन ग्रन्थ है। अपने मूल ग्रन्थ 'विक्रमार्जुन विजय' में इन्होंने अपने अाश्रयदाता 'अरिकेशरी द्वितीय, को अर्जुनरूपसे उपस्थित किया है, अतः यह ग्रन्थ ऐतिहासिक रचना है। इसी ग्रन्थसे हमें इन्द्र तृतीयके उत्तर भारत पर किये गये उन अाक्रमणोंकी सूचना मिलती है जिनमें उसका सामन्त अरिकेशरी द्वितीय भी जाता था। इस कालके दूसरे ग्रन्थकार 'असंग' तथा 'जिनचन्द्र' थे जिनका उल्लेख पूनने किया है यद्यपि इनकी एक भी कृति उपलब्ध नहीं है । पून कवि १० शतोके तृतीय चरणमें हुए हैं । यह संस्कृत तथा कनारी भाषामें कविता करने में इतने अधिक दक्ष थे कि इन्हें कृष्ण तृतीयने उभयकुल चक्रवर्तीकी उपाधि दी थी। इनकी प्रधान कृति 'शान्ति पुराण ' है । महाराज मारसिंह द्वितीयके सेनापति चामुण्डरायने 'चामुण्डरायपुराण' को दसवीं शतीके तीसरे चरणमें लिखा था। रन्न भी प्रसिद्ध कनारी कवि थे । इनका जन्म ९४९ ई० में हुआ था। इनका 'अजितनाथपुराण४१ ९९३ ई० में समाप्त हुआ था । जैन धर्म ग्रन्थोंका पुराण रूपमें रचा जाना बताता है कि राष्ट्रकूट युगमें जैनधर्मका प्रभाव तथा मान्यता दक्षिणमें असीम थी।
१ कर्णाटक भाषाभूषण, भूमिका० पृ० १३-४
३ एपी० इ० भा० ५, पृ० १७५ । ४" " ६ " ७२ ।