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राष्ट्रकूट कालमें जैनधर्म जिसे उनके शिष्य गुणचन्द्रने ८६७ ई० में समाप्त किया था; जो बनवासी' १२००० के शासक लोकादित्यके धर्मगुरु थे। श्रादिपुराण जैनग्रन्थ है जिसमें जैन तीर्थंकर, आदि शलाका पुरुषोंके जीवन चरित्र हैं । आचार्य जिनसेनने अपने पार्वाभ्युदय काव्यमें शृङ्गारिक खंडकाव्य मेघदूतके प्रत्येक श्लोककी अन्तिम पंक्ति ( चतुर्थ चरण ) को तपस्वी तीर्थकर पार्श्वनाथके जीवन वर्णनमें समाविष्टि करनेकी अद्भुत वौद्धिक कुशलताका परिचय दिया है । पार्खाभ्युदयके प्रत्येक पद्यकी अन्तिम पंक्ति मेघदूत के उसी संख्याके श्लोकसे ली गयी है। व्याकरण ग्रन्थ शाकटायनकी अमोघवृत्ति तथा वीराचार्यका गणित-ग्रन्थ 'गणितसारसंग्रह' भी अमोघवर्ष प्रथमके राज्यकालमें समाप्त हुए थे। तद्देशीय साहित्य
कनारी भाषामें प्रथम लक्षणशास्र 'कविराजमार्ग' लिखे जानेका श्रेय भी सम्राट अमोघवर्षके राज्यकालको है । किन्तु वह स्वयं रचयिता थे या केवल प्रेरक थे यह अब भी विवादग्रस्त है" । प्रश्नोत्तरमालाका रचयिता भी विवादका विषय है क्योंकि इसके लिए श्री शंकराचार्य, विमल तथा अमोघवर्ष प्रथमके नाम लिये जाते हैं । डा. एफ० डवल्यू० थोमसने तिब्बती भाषाके इसके अनुवादकी प्रशस्तिके आधारपर लिखा है कि इस पुस्तिकाके तिब्बती भाषामें अनुवादके समय अमोघवर्ष प्रथम इसका कर्त्ता माना जाता था । अतः बहुत संभव है कि वही इसका कर्ता रहा हो।
दसवीं शतीके मध्य तक दक्षिण कर्णाटकके चालुक्य वंशीय सामन्तोंकी राजधानी गंगधारा भी साहित्यिक प्रवृत्तियोंका बड़ा केन्द्र हो गयी थी। यहीं पर सोमदेव सूरिने अपने 'यशस्तिलकचम्पू' तथा 'नीति वाक्या नृत'का निर्माण किया था। यशस्तिलक यद्यपि धार्मिक पुस्तक है तथापि लेखकने इसको सरस चम्पू बनानेमें अद्भुत सहित्यिक सामर्थ्यका परिचय दिया है । द्वितीय पुस्तक राजनीतिकी है । कौटिल्यके अर्थशास्त्रकी अनुगामिनी होनेके कारण इसका स्वतंत्र महत्त्व नहीं श्रांका जा सकता है तथापि यह ग्रन्थ साम्प्रदायिकतासे सर्वथा शून्य है तथा कौटिल्यके अर्थशास्त्रसे भी ऊंची नैतिक दृष्टि से लिखा गया है ।
१ इ० एप्टी० भा० १२ पृ० २१६ । २ इसमें अपने को लेखक अमोघवर्षका 'परमगुरु, कहता है । ३ इ० एण्टी० १९१४ पृ० २०५ । ४ विण्टरनिश गजैटी भा० ३ पृ० ५७ । ५ इ० एण्टी० १९०४ पृ० १९९ । ६ ज० ब० ब्रा० रो० ए० सो- १२ पृ. ९८० । ७ यशस्तिलकचम्पू पृ० ४१९ ।
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