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संस्मरण
प्रातःकाल वे नगरमें प्रवेश करेंगे। बचपनसे राष्ट्रीय प्रवृत्ति मुझमें प्रधान रही है, अतएव सभा,
आयोजन आदिमें सदैव जाया करता था । उसी दृष्टिकोणसे प्रातःकालको लगभग आठ बजे मैंने समझ रक्खा था। सो दूसरे दिन आठ बजेके लगभग जब मैं अपने एक मित्रके साथ उस स्थान पर पहुंचा जहां उनका स्वागत होनेको था तो पता चला कि सूर्यकी प्रथम रश्मियोंके साथ ही वे उस स्थानसे चल पड़े थे। समयकी यह नियमित पाबन्दी विरलोंमें ही पायी जाती है । परोक्षरूपसे उनके इस प्रथम गुणने मुझे आकर्षित किया । खैर, बढ़ चले आगे, और हीरा आयल मिल्सके पास मैंने देखा विशाल जन समूह-तिल रखेनेकी जगह नहीं । 'वर्णीजीकी जय' की ध्वनि प्र:येक कोनेमें गूंज रही थी। और मेरी आंखें चुप चाप विकलतासे खोज रही थी, उस महान व्यक्तित्वको । कुछ मिनट
और, .....और मैंने देखा सफेद चादर लपेटे एक छोटे कदका श्यामल व्यक्ति नंगे पैर बड़ी तेजीके साथ मीलके प्रवेशद्वारसे निकल कर आगे बढ़ गया--। सिरपर कुछ श्वेत केश, नयनोंमें एक अपूर्व ज्योति, हंसता हुआ चेहरा, आजानु बाहु, रक्त कमल सी हथेलियां। विशाल जनराशि पागल हो कर चिल्ला उठी-'वर्णीजीकी जय'। उस महान् विभूतिके दो जुड़े हुए हाथ ऊपर उठ गये..... ..............तो यही वर्णीजी हैं ! और मनमें कोई बोल उठा-'महान् सचमुच महान् !' वह एक झलक थी लेकिन ऐसी झलक जो दिलमें घर कर गयी हो, जीवन भरको अपनी अमिट छाप छोड़ गयी । 'सादा रहना उच्च विचार' यह भारतीय आदर्श जैसे वणीजीके व्यक्तित्वमें मूर्तिमन्त हो उठा था। मेरा मन एक नहीं कई बार उस 'जय-ध्वनि' को दुहरा गया।
कवि होते हुए भी मैंने नर-काव्य नहीं किया । लेकिन उस दिन मध्यान्हमें जैसे किसीने मेरे कविको प्रेरित कर दिया उनके प्रति श्रद्धांजलि प्रगट करनेके लिए । और आप ही आप कुछ पंक्तियां कागज पर उभर उठी थीं । उसी दिन बहुत निकटसे उन्हें देखनेका मौका मिला। मैंने सुना वे कह रहे थे, 'आज एक वृद्धाने मुझे यह एक रुपया दिया है । शिक्षा के प्रसार हेतु मुझे एक लाख रुपया चाहिये"। और फकीरकी चादर फैल गयी । अधिक देर नहीं लगी, एक लाखके वचन प्राप्त हो गये। मैं सोच रहा था-कौन सा जादू इस व्यक्ति ने जैनसमाज पर डाल दिया है ? मनने उत्तर दिया-त्याग. तपस्या और निस्वार्थ सेवा । हां, सचमुच ये वर्णीजीके सेवा-पथके ज्योति-स्तम्भ हैं ।
फिर सुननेको मिला 'आजाद हिन्द फौज के लिए. एक सभाका आयोजन किया गया। लोगोंसे दान देनेकी अपील की गयी। साधु वर्णीजीके पास क्या था ? फिर भी उन्होंने अपनी चादर उतार कर
में देनेकी घोषणा की । और यह सब पढ़ कर मेरा मन कह रहा था-- काश हमारा साधु समाज यदि ऐसा ही हो पाता तो जाने आज भारत कहां रहता। वीजीके इस स्वल्प परिचयने मनकी उत्कंठा बढा दी। उनके बिगत जीवनसे मैंने परिचय
त्रेसठ