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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
द्रव्यके अंशोंको क्षेत्र कहते हैं । धड़ेके अंश अवयव ही घड़ेका क्षेत्र हैं। घड़ेका क्षेत्र वह नहीं है जहां घड़ा रखा है, वह तो उसका व्यावहारिक क्षेत्र है । इस अवयव रूप क्षेत्रकी अपेक्षा होना ही घड़ेका स्वक्षेत्रकी अपेक्षा होना है।
पदार्थके परिणमनको काल कहते हैं । हर एक पदार्थ का परिणमन पृथक् पृथक् है । घड़ेका अपने परिणमनकी अपेक्षा होना ही स्वकालकी अपेक्षा होना कहलाता है। क्योंकि यही उसका स्वकाल है । घंटा, घड़ी, मिनिट, सैकण्ड, आदि वस्तुका स्वकाल नहीं है । वह तो व्यावहारिक काल है ।
वस्तुके गुणको भाव कहते हैं । हर एक वस्तुका स्वभाव अलग अलग होता है। घड़ा अपने ही स्वभावकी अपेक्षा है, वह अन्य पदार्थों के स्वभाव की अपेक्षा कैसे हो सकता है। इसप्रकार स्वद्रव्य क्षेत्र-काल-भावकी अपेक्षा पदार्थ है और परद्रव्य क्षेत्र-कालकी अपेक्षा नहीं है। इस स्व-पर चतुष्टयके और भी अनेक अर्थ हैं।
__ जब हमारी दृष्टि पदार्थ के स्वरूपकी ओर होती है तब अस्ति भंग बनता है। और जब उसके पररूप की अपेक्षा हमें होती है तब दूसरा नास्ति भंग बनता है। किन्तु जब हमारी दृष्टि दोनों ओर होती है तब तीसरा आस्ति-नास्ति भंग उत्पन्न होता है और यही दृष्टि एक साथ दोनों ओर से हो तो अवक्तव्य नामका चौथा भंग हो जाता है क्योंकि एक समयमें दो धर्मोंको कहनेवाला कोई शब्द नहीं है । किन्तु यह तो मानना ही होगा कि अवक्तव्य होने पर भी वस्तु स्वरूपकी अपेक्षा तो है ही और पर रूपकी अपेक्षा वह नास्ति भी है। इसी तरह वह अवक्तव्य वस्तु क्रमशः स्वपर चतुष्टयकी अपेक्षा
आस्ति नास्ति होगी ही। इसलिए कथंचित् आस्ति अवक्तव्य वस्तु क्रमशः स्वपर चतुष्टयकी अपेक्षा अास्ति नास्ति होगी हो । इसलिए कथंचित् अस्ति श्रवक्तव्य कथंचित नास्ति वक्तव्य और कथंचित् अास्ति नास्ति अवक्तव्य नामक पांचवा, छठा और सातवां भंग बनेगा। स्पष्टीकरण
यदि मूलके दो भंग अस्ति नास्तिमें से केवल कोई एक भंग ही रखा जाय और दूसरा न माना जाय तो क्या हानि है ? इसी से काम चल जाय तो दूसरे भंगोंकी संख्या भी न बढ़ेगी।
___ नास्ति भंग नहीं माननेसे जो वस्तु एक जगह है वह अन्य सब जगह भी रहेगी। इस तरह तो एक घड़ा भी व्यापक हो जायगा, इसी प्रकार यदि केवल नास्ति भंग ही माना जाय तो सब जगह वस्तु नास्ति रूप हो जानेसे सभी वस्तुओंका अभाव हो जायगा इसलिए दोनों भंगोंको माननेकी
आवश्यकता है । इन भंगोंका विषय अलग अलग है, एकका कार्य दूसरेसे नहीं हो सकता । देवदत्त मेरे कमरेमें नही है इसका यह अर्थ कभी नहीं होता कि अमुक जगह है। इसलिए जिज्ञासुके इस सन्देह को दूर करनेके लिए ही वह कहां है अस्ति भंगकी जरूरत है । इसी तरह अस्ति भंगका प्रयोग होने पर
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