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स्याद्वाद और सप्तभंगी भी नास्ति भंगकी अावश्यकता बनी ही रहती है। मेरी थालीमें रोटी है यह कह देने पर भी तुम्हारी थालीमें रोटी नहीं है इसकी आवश्यकता रहती ही है क्योंकि यह दोनों चीजें भिन्न भिन्न हैं। इस प्रकार अस्ति, नास्ति दोनों भंगोंको मानना तर्कसे सिद्ध है।
____ अस्ति-नास्ति नामक तीसरा भंग भी इनसे भिन्न स्वीकार करना पड़ेगा। क्योंकि केवल अस्ति अथवा केवल नास्ति द्वारा इसका काम नहीं हो सकता । मिश्रित वस्तुको भिन्न मानना प्रतीति एवं तर्क सिद्ध है। शहद और घी समान अनुपातमें लेनेसे विष बन जाता है। पीला और नीला रंग मिलानेसे हरा रंग हो जाता है अतः तीसरा भंग पहले दोसे भिन्न है।
चौथा भंग अवक्तव्य है । पदार्थके अनेक धर्म एक साथ नहीं कहे जा सकते, इसलिए एक साथ स्वपर चतुष्टयके कहे जानेकी अपेक्षा वस्तु अवक्तव्य है । वस्तु इसलिए भी प्रवक्तव्य है कि उसमें जितने धर्म हैं उतने उसके वाचक शब्द नहीं है । धर्म अनन्त है और शब्द संख्यात । एक बात यह भी है कि पदार्थ स्वभावसे भी अवक्तव्य है । वह अनुभवमें आ सकता है, शब्दोंसे नहीं कहा जा सकता।
मिश्रीका मीठापन कोई जानना चाहे तो शब्दसे कैसे जानेगा ? वह तो चखकर ही जाना जा सकता है । इस प्रकार कई अपेक्षाओंसे पदार्थ अवक्तव्य है। किन्तु वह अवक्तव्य होने पर भी किसी दृष्टिसे वक्तव्य भी हो सकता है। इसलिए अवक्तव्यके साथ अस्ति, नास्ति और अस्ति-नास्ति लगानेसे अस्ति अवक्तव्य, नास्ति अवक्तव्य, और अस्तिनास्ति अवक्तव्य इस प्रकार पांचवा छठा और सातवां भंग हो जाता है। प्रमाण सप्तभंगी और नय सप्तभंगी--
यह सप्तभंगी दो तरह से होती है । प्रमाण सप्तभंगी और नय सप्तभंगी। वस्तु को पूरे रूप से जानने वाला प्रमाण और अंश रूप से जानने वाला नय है। इसलिए वाक्य के भी दो भेद है—प्रमाण वाक्य और नय वाक्य । कौन प्रमाण वाक्य और कौन नयवाक्य है ? इसका पता शब्दोंसे नहीं भावोंसे लगता है । जब किसी शब्दके द्वारा हम पूरे पदार्थ को कहना चाहते हैं तब वह सकलादेश अथवा प्रमाण वाक्य कहा जाता है और जब शब्द के द्वारा किसी एक धर्म को कहा जाता है तब विकलादेश अथवा नय वाक्य माना जाता है ।
वैसे तो कोई भी शब्द वस्तु के एक ही धर्म को कहता है फिर भी यह बात है कि उस शब्द द्वारा सारी वस्तु भी कही जा सकती है और एक धर्म भी । जीव शब्द द्वारा जीवन गुण एवं अन्य अनन्त धर्मोंके अखण्ड पिण्ड रूप अात्माको कहना सकलादेश है और जब जीव शब्दके द्वारा केवल जीवन धर्मका ही बोध हो तो विकलादेश होता है । अथवा जैसे विषका अर्थ जल भी है। जब इस शब्द द्वारा जल नामका पदार्थ कहा जाय तब सकलादेश और जब केवल इसकी मारण शक्तिका इसके द्वारा