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अनन्तकी मान्यता
अनन्त विभाजन (भूमिति )--
रेखागणितकी एक रेखाको लीजिये। उसे दो, दो बार विभाजित करते जाइये और अनन्त बार प्रत्येकके भाग कीजिये । प्रत्येक विभागका विभागी-करण कभी समाप्त न हो गा । इस धाराके विभागी करणकी अनन्तताकी सम्भावना पहले असम्भव और स्व-विरोधी मानी जाती थी। परन्तु अाधुनिक गणितज्ञोंने इसके प्रतिकूल संभावना और अविरोध सिद्ध कर दिया है। असम्भवता इस कल्पना पर निर्भर थी कि एक सान्त धारामें सान्त या सोमित ही अंश हों गे । परंतु स्थिति यह नहीं है। यह ऊपर बताया जा चुका है कि ससोम रेखामें सीमित अंश होते हैं । यहां श्राप अनंत अंश मालाकी व्यवस्थाका क्रम रेखागणितकी रेखा के अंतों-कोणोंमें पाते हैं जो सादि और सान्त हैं। यदि ससीम रेखामें जिसका काल मर्यादित है उसमें मर्यादातीत अर्थात् अनंत अंश हैं तथा वह अनंत संख्या वाले क्षण विशिष्ट हैं तब यह दार्शनिक-पालोचना कि काल और अाकाशमें स्वयं विरोध है, युक्तियुक्त न होगी । अतएव दार्शनिकोंको इस परिणाम पर नहीं पहुंचना चाहिये कि अाकाश और काल असत्य तथा असम्भव हैं ।
अनादि-अनन्त की सिद्धि--
___ इस तरह हम जैनदर्शनके अनुसार ऐसे जगतको पाते हैं जिसका न तो अादि है और न अंत, यद्यपि उसमें परिणमन होता रहता है । यह भी सम्भव है कि संसारमें जीव सदा पर्यटन करता रहे । इसतरह एक श्रात्माकी अपेक्षा संसारका अादि नहीं है। उसी प्रकार अनंत माला भी अनादि होगी। जब आत्मा कर्मके बंधनोंको तोड़कर स्व-स्वरूपको प्राप्त करता है—मुक्त होता है, तब जीवन और मरण रूप संसार परिभ्रमणकी गति रुक जाती है । इस प्रकार इस विषयमें आदि विहीन संसारका अंत हो जायगा । यद्यपि व्यक्तिगत रूपसे आत्माएं संसार चक्रसे छूटकर मुक्ति पा जाती हैं, तथापि संसारमें विद्यमान अनंत जीवोंकी अपेक्षा संसारकी शृंखला अविच्छिन्न रूपसे चली जाती है । संसारमें विद्यमान अनंत जीवोंकी अपेक्षा संसारकी शृखला अविच्छिन्न रूपसे चलो जाय गी। संसार अनन्त जीवोंका पुञ्ज है, उसमें से कितनेही जीव चाहे वे अनन्त ही क्यों न हो, मुक्त हो जाय, तब भी वह पुञ्ज या अनंत राशि किसी प्रकार कम नहीं होगी। जिन अात्माोंने निर्वाण प्राप्त किया है वे अनंत होंगी, फिर भी संसारमें विद्यमान जीव राशिकी संख्या पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़े गा । यथार्थ में यह बहुत मनोरंजक बात है कि भौतिक विज्ञानके जैन आचार्योंने श्राकाश, काल और अनंत प्रचयके विरुद्ध उठायी गयी अनेक शंकाओंके उत्तरमें गणितकी एक पद्धतिको समुन्नत किया था, आधुनिक गणित के सिद्धान्त जिसका समर्थन करते हैं और जिसका प्रचार रसल और ह्वाइट हेड जैसे महान् गणितज्ञोंने किया है।