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अनन्तकी मान्यता 'आगे-आगेके अंक एकके जोड़नेसे बढ़ते जाते हैं । अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस मालाकी ‘एक-सौ-एक' संख्या भी सौमें एक जोड़नेसे ही प्राप्त हो सके गी ।
उसका परिहार
अनन्त संख्यामें यह वैशिष्ट नहीं पाया जाता । उदाहरणार्थ- १, २, ३, ४, श्रादि संख्याओंकी एक माला लिखिये और ठीक उसके नीचे २, ४, ६, ८, आदि यथा क्रम लिखिये । इनमें सान्त अंकोंकी प्रथम माला अंत रहित है, कारण, उसको विना मर्यादाके गणना कर सकते हैं । इसे ही पारभाषिकशब्दमें 'अनन्त माला' कहें गे । इसमें पाये जाने बाले अंक अनन्त हों गे । इसी प्रकार २,४,६,८, आदि अंक वाली दूसरी माला भी अंत रहित है और उसे भी अनन्त-अंक-युक्त अनन्त माला कहें गे | प्रथम मालाके प्रत्येक अंकके अनुरूप दूसरी मालामें अंकावली है इस तरह दोनों मालाएं तुल्य हैं, क्यों कि दोनों अगणित अंकावलि युक्त हैं । किन्तु द्वितीय मालामें सम-संख्या वाले अंक हैं, विषम संख्यात्रोंका अभाव है । प्रथम मालामें सम और विषम सभी अंक हैं । इसप्रकार एक दृष्टि से कह सकते हैं कि द्वितीय माला प्रथम मालाका एक अंग है, कारण; वह सब विषम संख्याओंसे शून्य है। यद्यपि, ऊपर देख चुके हैं कि गणितकी दृष्टि से दोनों मालाएं सदृश हैं क्योंकि दोनों अनन्त हैं-अन्त रहित हैं । तथापि एक पहेली-सी सम्मुख अा खड़ी होती है जो ऊपरसे देखने में जटिल ज्ञात होती है कि यदि दोनों मालाएं सान्त हैं तब तो दूसरी मालामें पहिली मालाकी अपेक्षा अल्पतर अंक होना चाहिये कारण उसमें प्रथम मालाके कुछ अंक नहीं हैं । यह निर्णय अनन्त संख्यात्रों के सम्बन्धमें नहीं लग सकता क्योंकि प्रथम मालाके प्रत्येक अंकके स्थानमें द्वितीय मालामें अन्य अंकावली है । यह उभय-गत समानता सर्वत्र पायी जाय गी। और चूंकि दोनों मालाएं अनन्त हैं इसलिए उनकी सदृशता एकताको प्रकट करेगी। इससे स्पष्ट मालूम होता है कि धन और ऋण सदृश गणितकी प्रक्रिया अनन्त अकोंके सम्बन्धमें अर्थहीन है । अनन्त संख्यामें अन्य संख्याअोंके जोड़नेपर वृद्धि नहीं होती तथा अनन्त संख्या में से कुछ संख्यात्रों को घटानेपर उसमें हानि भी नहीं हो गी । वह अनन्त ही रहेगी।
अनन्त माला ( Series ) का शाब्दिक अर्थ अंत-हीन माला है अर्थात् ऐसी संख्याएं जिनका कोई अंत न हो । कालकी अवधि इसी प्रकार 'अनन्त-माला' रूप है। अनंत मालाका नियमके अनुसार अंत नहीं होगा, यह प्रचलित मान्यता अाधुनिक गणित-सिद्धान्तोंके अनुसार कुछ संशोधन योग्य है, उदाहरणार्थ-१-२-३-४, आदि अंकोंकी माला अनन्त माला रूप है क्योंकि कितनी ही गणना करते जाइये, उसके अंतिम अंकको प्राप्त नहीं कर सकते । प्रचलित मान्यताके अनुसार भी यह माला अंत रहित अर्थात अनन्त है। किंतु उसका प्रारम्भ १' अंकसे होता है जो कि मालाका प्रथम अंक
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