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वी-अभिनन्दन ग्रन्थ
स्थापित की । उस बस्तीमें सभीके लिए शारीरिक परिश्रम करना अनिवार्य कर दिया गया। इस प्रकार सम्पत्तिका उत्पादन होने पर प्रत्येकको अावश्यकतानुसार सम्पत्ति विभाजन किया गया और बची हुई सम्पत्ति सार्वजनिक कोषमें रक्खी गयी । परन्तु उनकी इस बस्तीकी आयु पांच-दस वर्षके आगे न बढ़ी। बाहरके लोग इन बस्तियों में आकर खलल डालते; सदत्योंमें धर्म प्रमावना और दूसरी भ्रान्त धारणाओंको प्रश्रय और उत्तेजना दिलाते, और इस कारण उनमें आपसी फूट पड़ कर अव्यवस्था मच गयी। कार्ल मार्क्स-युग--
शान्तिवादी दयालु गृहस्थोंका यह समाजवाद कार्ल मार्क्सको पसन्द न था। ऐसे लोगोंको मार्क्स नन्दनवनीय (Utopian) सोशलिस्ट कहा करता था। फिर भी मार्क्सका समाजवाद इन्ही नन्दनवनीय समाजवदियोंसे उदय हुअा, यह न भूलना चाहिये। मार्क्स के मतानुसार युद्ध बन्द करनेका उपाय था दुनियां भरके श्रमीजनोंको गठितकर पूंजीपतियों तथा जमीदारोंको नष्ट करना। उसका विचार था कि इस प्रकार सारी दुनिया के श्रमसंगठनसे युद्ध रुक जायगे और मनुष्य मात्रमें भ्रातृ-भाव फैल जावेगा।
मजदूरोंका सबसे बड़ा शत्रु था राष्ट्राभिमान (Nationalism)। उसे नष्ट करनेके लिए उसने 'Workers International" नामकी एक संस्था स्थापित की वह उसके रहते ही टूट गयी। इसके बाद दूसरी इण्टर नैशनल स्थापित हुई । वह महायुद्ध के समयमें विलोन हो गयी। फिर रूसी राज्यक्रान्तिके बाद तीसरी इण्टर नैशनल भी बन गयी, पर इन यत्नोंसे भी शान्ति स्थापना न हुई। .
___ इटलीके सैनिक श्रमिकोंने अवीसीनियाको जो तहस नहस किया, स्पेनमें जर्मन और इटालियन श्रमिकों द्वारा जो अत्याचार किये गये और जापानी श्रमिकों द्वारा चीनमें सहधर्मियोंका जो करले श्राम किया गया, वह सब इसीका साक्षी है कि 'वर्करस् इन्टरनैशनल" भी एक नन्दनवनीय स्वप्न मात्र रहा।
___ मानव मात्रमें अहिंसा प्रस्थापित करने के लिए सबको शारीरिक परिश्रम करना ज़रूरी है, और अहिंसाके आध्यात्मिक बलपर हिंसा-विरोध पर कटिबद्ध हो जाना चाहिये, यही दो सिद्धान्त टालस्टायने दुनियांके सामने रक्खे । परन्तु टालस्टायका उपदेश माननेको पश्चिमी देश तैयार नहीं हुए, और महायुद्ध होकर ही रहा। महात्मा गांधीकी अहिंसा--
अहिंसाको व्यवहारिक रूप सर्वप्रथम महात्मा गांधीने ही दिया । पाश्चात्य संस्कृतिसे चकाचौंध होकर जो लोग बौद्ध और जैनधर्मके अहिंसा प्रचारको भारतके वर्तमान अधःपतनका कारण बताते हैं, उन्हें गांधीजीने अहिंसा प्रयोगसे खासा जवाब दिया । अहिंसा साधनाके बलपर कैसी तेजस्विनी हो सकती. है, यह स्वयं-कृति द्वारा गांधीजीने बताया । कितनी ही बलशाली और शस्र सम्पन्न, कोई सत्ता क्यों न हो
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