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जैनाचार्य और बादशाह मोहम्मदशाह श्री महामहोपाध्याय पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ
मुग़ल बादशाह मोहम्मद शाह वि० सं० १७७३ से १८०५ तक दिल्लीके तख्त पर था । इसने अपने २२ वै राज्य वर्षमें चांणोदमें प्रसिद्ध राजवैद्य भट्टारक गुरां पण्डित उदयचन्द्रजी महाराजके पूर्वाचार्यों को एक फरमान दिया था। उससे मुग़ल बादशाहोंकी जैन-धर्मके प्रति श्रद्धा और उस समयके हिन्दू और मुसलमानोंके सौहार्दका पता चलता है। यह फरमान २० जिलहिज ( अर्थात् चैत्र वदि ६ विक्रम संवत् १७९६ ) को लिखा गया था और इस समय उक्त गुरां साहबके पास विद्यमान है ।
अागे हम उक्त फरमानका भावार्थ उदधृत करते है
"श्री बाबाजी ज्ञान सागर स्वामीजी और .... स्वामीको अजमेरके सूबेमें रहनेवाले प्रत्येक हिन्दू व मुसलमानके घरसे और खासकर हर बनिये और जतीसे हर धानकी फसल पर एक रुपया और एक नारियल लेनेका अधिकार दिया गया था; और क्यों कि यह अधिकार पीढ़ी दर पीढ़ीके लिए था, इसलिए इसे बादशाह मोहम्मदशाहने भी दिया है।"
इस फरमानसे ज्ञात होता है कि यह अधिकार मोहम्मदशाहके पूर्वके बादशाहोंके समयसे ही , चला आता था और इसके विषयमें मुसलमानोंको भी कोई आपत्ति नहीं थी।
इन बातोंकी पुष्टि जोधपुर नरेश महाराजा विजय-सिंहजीके फरमान से भी होती है, जिसमें परम्परा गत उक्त भेटोंको लेते रहने के अधिकारकी पुष्टि की गयी है।
१. ये दोनों फरमान अभी अप्रकाशित हैं । शीघ्रही प्रकाशित करानेकी व्यवस्था हो रही है