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जैनाचार तथा विश्व समस्याएं व्यक्तित्वका साध्य अर्थात् आत्मव्यक्तिका एक उद्देश्य उस उच्चतर सामाजिक सहिष्णुतासे एकतानता है जिसे परोपकारिता, बलिदान, सेवा, आदि नामोंसे कहते हैं। ये ही व्यक्तित्वका श्रेष्ठतम रूप हैं । यह अनुशासन तथा प्रात्मानुशासनका मार्ग है। इसमें तथा प्रबल बलप्रयोगमें बड़ा भेद है । जबरदस्तीके फल पतनोन्मुख नैराश्य तथा निरोध भी हो जाते हैं । किन्तु 'कलम-करने' के समान संयय मानवजीवन रूपी वृक्षमें नूतन पत्र तथा पुष्प आदि द्वारा श्रीवृद्धि ही करता है।
वासना-शान्ति--
यदि मनुष्य प्रत्येक वासनाकी पूर्ति करने लगे, वातावरणसे प्राप्त प्रत्येक उत्तेजनासे श्राकुल होने लगे, तो जीवन विरोध, चंचलता तथा लघुता(उथलेपन) अवास्तविकताकी क्रीड़ास्थली बन जाय गा। जीवनके मूल स्रोत दबे ही रह जायगे और लघुताका साम्राज्य हो जाय गा । फलतः अन्य विकासोंके समान अात्म नियन्त्रण ही मानवकी एकमात्र गति है। उसे भले बुरेका विवेक करना होगा। विवेक करनेकी वृत्ति अपनानी पड़ेगी और अपने मनोवान्छितोंमें एकतानता लानी हो गी । हेय वृत्तियोंसे मनको हटा कर उपादेय वृत्तियोंमें तल्लीन करना हो गा । हेय वृत्तियोंके लिए जिस उत्साह शक्तिका उभार उठता है उसे उपादेय वृत्तियों के परिपोषणकी ओर बहाना हो गा । अतृप्त वासनात्रोंके कारण उत्पन्न उत्कण्ठाकी धाराको तृप्त वृत्तियोंके संतोषसरमें मिलाना होगा।
लोकाचारको समझते ही बालकमें वासनाका उचित निकार प्रारम्भ हो जाता है। जहां पुरुषमें शक्ति, प्रेरणा तथा उत्कण्ठा बढ़ती हैं वहीं उसमें विवेक, नैतिक-निर्माण तथा आत्म-संयमका भी विकास होता है । वासना शान्ति निरोधका नैतिक व्लोम है। वासना, आकांक्षा तथा वृत्तियोंके निरोधका अभाव जीवन शक्तिको इतस्ततः बिखेर दे गा, विकासको रोकदे गा और दैहिक संघननको नष्ट कर दे गा । यदि इनका बलवत् निरोध किया जायगा तो भी जीवन जटिल हो जाय गा, अान्तरिक द्वन्द्वों तथा अनेकतानताकी सृष्टि होगी और वे स्वप्न, दूषित अभिप्राय, अाकुलता एवं विपथगामिताके रूपमें फूट पड़ेंगे। अतएव वासना-शान्ति स्वाभाविक प्रकार है जो व्यक्तित्वको अक्षुण्ण रखते हुए संयमकी ओर ले जाता है । न्यूनाधिक रूपसे सभी वासना शान्ति करते हैं किन्तु वह सर्वांग नहीं होती या किसी निश्चित सीमापर ही रुक जाती है क्योंकि न तो उसके पीछे श्रादर्श या निश्चित संकल्प रहते हैं और न उच्चतर जीवन व्यतीत करनेकी भावना तथा उसकी प्रेरणा एवं उद्देश्य होते हैं । वास्तवमें वासना-शान्ति; नैतिक अाकांक्षा तथा विकासानुगामिनी शक्ति एवं सर्वाङ्गीण वृद्धिका सम्मिश्रण है । आपाततः यह जीवन व्यापी उत्तेजनाको शान्त करता है और शुभ, अशुभ भावोंकी वृद्धि होने देता है । अादर्श स्पष्ट और और दृढ़ होते हैं। सर्वाङ्गणी जीवनमें सहज ही सजीवता आ जाती है । मनुष्यका चतुर्मुख निर्माण
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