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शिक्षाकी दृष्टिसे समाधिमरणका महत्व
बच्चा उन्हीं विचारोंकी साकार मूर्ति धारण करे गा । इसको उन्होंने एक उच्च कुलोत्पन्न महिलापर परीक्षा द्वारा प्रमाणित किया है। प्रथम बार जब वह माता गर्भवती हुई तो उसके कमरेमें वीर पुरुषोंके चित्र लगाये गये । उन्हींका परिचय, जीवन चरित्र, उसी ढंगकी कथा कहानियों का साहित्य उसे नौ मास तक बराबर पढ़ाया गया ताकि उस स्त्रीका समय एक विशेष वातावरणमें व्यतीत हो । कहते हैं,उसका वह पुत्र बड़ा शूरवीर निकला । दूसरी बार जब वह गर्भवती हुई तो उस स्त्रीकी इच्छा हुई कि अबकी बार उसका पुत्र अच्छा संगीतज्ञ निकले इसलिए इस बार उसके शयनागारमें दुनियांके प्रसिद्ध और निपुण गाने और बजाने वालोंके चित्र लगाये गये और उन्होंके चरित्र और गायन वादनके श्रवणमें उसने अपना समय व्यतीत किया इस बार उसका दूसरा पुत्र बड़ा संगीतज्ञ निकला। इसी तरह उसके चार पांच पुत्र हुए जो कि संस्कारों द्वारा कोई प्रसिद्ध चित्रकार, कोई कवि, कोई सफल राजनीतिज्ञ, भिन्न भिन्न विषयोंमें पारंगत हुए। इसके आगे जैनधर्म
बस अाधुनिक वैज्ञानिकोंकी अंतिम खोज बालकके गर्भ में आने तक ही गयी है । इसके आगे बढ़ना उनकी बुद्धिके लिए अगम्य था लेकिन हमारे त्रिकालज्ञ तीर्थकारोंने ने अपने दिव्य चक्षुत्रोंके द्वारा इसके आगेका मार्ग खोज निकाला । उन्होंने बताया कि जीवोंका जन्म; मरणके उपरांतकी अवस्था है जिसका मरण अच्छा हो गा उसका उत्तम गर्भ में जन्म होना अनिवार्य है और जिसका मरण बुरी तरहसे हो गा उसका जन्म भी निश्चयसे बुरी योनिमें हो गा जैसा कि एक जगह पं० प्रवर श्राशाधरजीने कहा है----
काऽपि चेतपुद्गले सक्तो नियेथास्तद् ध्रुवं चरः। ___तं कृमीभूय सुस्वादु चिर्भटासक्त भिक्षुवत् ॥ ( सागार धर्मामृत )
भावार्थ-हे उपासक ! यदि तू किसा पुद्गलमें अासक्त हो कर मरणको प्राप्त हो गा तो कचरिया के भक्षणमें श्रासक्ति रखनेवाले भिक्षुके समान उसो पुद्गलमें जन्म लेकर उसका ही सदैव भक्षण करने वाला प्राणी होगा । इसलिए परद्रव्यकी आसक्तिको छोड़।
__ यही कारण है कि दुनियांके तमाम धर्म और कोमोंमें मरण क्रिया को पवित्र और धार्मिक बनानेकी भिन्न भिन्न प्रकारकी क्रियाएं होती देखी जाती हैं और यही भावनाएं काम करती रहती हैं तात्माको स्वर्गमें जगह और वहांकी सहज शान्ति मिले ईसाइयोंमें जब कोई मरता है तो मुर्दे स्नान कराकर अच्छे वस्त्राभूषण पहनाकर इत्र फुलेल, आदिसे सुसज्जित करते हैं फिर पादरी साहब बाइबिलका कुछ अंश पढ़ते हैं और उस मृत पुरुषकी अात्माकी शान्तिके लिए उपस्थित लोगोंके साथ दुअा पढ़ी जाती है और मुर्दे को सन्दूकमें बन्दकर कब्र स्थानमें दफना देते हैं । इसी तरह मुसलमानोंमें भी मुर्देको कलमेका पानी छिड़क कर और दुश्रा पढ़कर दफना देते हैं। पारसियोंमें भी इसी तरहकी दुश्रा प्रार्थनाके बाद मुर्दे या तो दफना दिये जाते हैं या एक कुंएमैं पाले गये गिद्धोंको खिला दिये जाते हैं । हिन्दु धर्ममें भी मरण समय दुर्गापाठ, गीतापाठ या राम राम भजनेका रिवाज पाया जाता है और मदेंको दाहसंस्कारको ले जाते समय, 'राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत्य है की ध्वनि २१
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