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वर्णो अभिनन्दन ग्रन्थ
सिद्धोहं सुद्धोहं प्रांत णाणाइगुण समिद्धोहं । देहपमाणो णिच्चो सखदेसो श्रमुत्तो ण ।
अर्थात् मैं ही सिद्ध हूं, शुद्ध हूं, अनंत ज्ञानादि गुणोंसे पूर्ण हूं, अमूर्तिक हूं, नित्य हूं, संख्यात प्रदेशी हूं और देह प्रमाण हूं इस तरह अपनी आत्माको सिद्ध के समान वस्तु स्वरूपकी अपेक्षा जानना चाहिये ।
श्री पूज्यवाद स्वामी समाधिशतक में कहते हैं ---
यः परमात्मा स एवाहं योऽहं स परमस्ततः ।
श्रहमेव मयोपास्यो नान्यः कश्चिदिति स्थितिः ॥
अर्थात् - जो कोई प्रसिद्ध उत्कृष्ट आत्मा या परमात्मा है वह ही मैं हूं तथा जो कोई स्वसंवेदन गोचर मैं श्रात्मा हूं सो ही परमात्मा है । इस लिए जब कि परमात्मा और मैं एक ही हूं तब मेरे द्वारा मैं ही श्राराधने योग्य हूं कोई दूसरा नहीं। इस प्रकार अपने स्वरूपमें ही आराध्य श्राराधक भावकी व्यवस्था है।
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