________________
वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
प्राचीन-युग
इस युगका प्रारंभ भोगभूमिसे है । उस समय न केवल मानव जीवनकी किन्तु सभी प्राणियोंकी स्थिति भोग प्रधान थी । पूर्वोपार्जित कर्मफल स्वरूप प्रकृत्ति द्वारा दत्त पदार्थों का भोग ही उनके लिए पर्याप्त था, उन्हें कार्य करनेकी आवश्यकता नहीं प्रतीत होती थी । इस दृष्टि से संसार उस समय बहुत सुखी था ।
उस समय मनुष्य समाज अाजके रूप में नहीं था । न कोई राजा था, न कोई प्रजा । न कोई धनवान् था, न निर्धन, न कोई विद्वान् था, न कोई मूर्ख । न कोई बलवान था, न निर्बल । न कोई सुन्दर था, न असुन्दर । विषमता न थी। सभी सन्तोषी, समझदार, सुन्दर, स्वस्थ और स्वतंत्र थे । कोई किसीकी स्वतन्त्रता में बाधा देनेकी बात सोचता भी न था।
वहां न कल थे, न कारखाने, न फैक्टरियां । एक देशसे दूसरे प्रदेशके लिए मालका आना जाना, श्रादि भी नहीं होता था। न उनकी कोई सभा थी, न कोई संघ । किसी भी प्रकारके अांदोलन किये जानेका वहां प्रसङ्ग ही नहीं था।
वहां न साम्यवाद था, न कोई अन्यवाद, सब समान विचार, समान प्राचार तथा समान व्यवहारके व्यक्ति थे । साम्य था, पर 'साम्य-वाद' न था, 'वाद' की आवश्यकता उन्हें कभी नहीं हुई । वे धार्मिक या साम्प्रदायिक विचार के व्यक्ति न थे, और न अधार्मिक थे । उनका जो कुछ वर्तन ( जीवन प्रवाह ) था न वह त्याग और व्रत रूप था, और न पाप प्रवृत्ति रूप था। वे न मोक्षसाधन करते थे, और न नरक जाने योग्य कर्मसञ्चय करते थे ।
__ प्रकृतिके स्थान वनप्रदेश, नदी-नद,पुलिन-तट, आदि ही उनके विहार स्थल थे । प्रकृतिका पर्यवेक्षण करना, उसकी ही चर्चा करना, उनका एक मात्र दैनिक कृत्य था । कहीं भी नरम घास देखकर प्रकृतिकी गोदमें सो जाते थे । वस्त्राकार वृक्ष-पत्रों व छालोंसे शरीरको ढक लेते थे । विशेष आवश्यकतासे कभी वृक्षके सुन्दर अवयवोंसे घरसा बना लेते और उतने ही परम सन्तोष धारण कर आनन्दित रहते थे।
इस प्रकारकी सुन्दर व्यवस्था किसो एक देशमें ही न थी बल्कि समस्त मानव समुदायको थी। उस समय सब एकदेश था, विदेश कहों न था। प्राकृतिक लक्षणोंसेहो देश विभाजन था पर मनुष्यके अनधिकृत अधिकार स्थापनके द्वारा कहीं भी देश विभाजन न था । सन्तान क्रम--
परिवर्तन या परिवर्धनकी पद्धति भी वहां विचित्र थी। माता-पिता अपने जीवन में एकबार हो सन्तानको जन्म देते थे । उनके जीवन के अन्तिम समय में ही सन्तान होती थी, और वह सन्तान अकेली नहीं "नरनारी" के युगल रूपमें होती थी । वे अाजकलको पद्धतिके समान भाई बहिन नहीं माने जाते थे । उस समय भाई-बहिन-माता-पिता-मामा भानजा-साला-वहिनोई-फूफा-फुत्रा, आदि कोई रिश्ता नहीं होता था